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अधिकार तो चाहिएं पर लोकतंत्र की मजबूती में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभानी

Posted by : pramod goyal on : Monday, 3 March 2025 0 comments
pramod goyal
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 फरीदाबाद में मतदान प्रतिशत कम रहता है, लेकिन इतना कम कि 40  प्रतिशत तक पहुंचने में भी मशक्कत हो, यह लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं. आखिर क्या वजहें हैं कि फरीदाबाद में लुढ़क गया. चर्चा होनी चाहिए.

मेरा मानना है कि इतना कम प्रतिशत के लिए

सिर्फ वोटर्स ही जिम्मेदार नहीं हैं. यह उदासीनता बेवजह तो नहीं हो सकती. सबसे बड़ी वजह तो यह है कि आखिर निगम बनने के बाद से ही फरीदाबाद की मूलभूत समस्याओं का कितना समाधान हो पाया...?
ऐसा नहीं कि विकास कार्य नहीं हुए लेकिन जिन समस्याओं से सिटीजंस को डे टू डे सामना करना पड़ता है, उनसे निजात मिल पाई क्या..?
अभी तक चुने गए मेयरों और पार्षदों ने कितनी ईमानदारी से अपने काम किए...?
अफसरों की कारगुज़ारियों पर कोई अंकुश लगा क्या..?
छोटे से छोटा काम भी बिना रिश्वत के नहीं हो सकता. प्रॉपर्टी आईडी हो, फैमिली आईडी हो, ऐसे बहुत मुद्दे हैं।  जिनकी वजह से शहर का हर आम व खास नागरिक सीधे सीधे प्रभावित हुआ. 

अंडर पास, ओवरब्रिज जैसे बड़े काम तो हुए, मैट्रो भी बन जाएगी, लेकिन भ्रष्टाचार, कूड़ा, प्रदूषण, अवैध निर्माण, सड़कें, अतिक्रमण, ट्रैफिक जाम, सीवर, पेयजल, सड़कों पर जल जमाव जैसे मुद्दों पर अभी तक नगर निगम लगभग फेल रहा है. ऍफ़ एम डी ए भी फेल रहा..न जाने कितनी बार इन मुद्दों को नागरिकों ने उठाया पर समाधान शून्य.....आखिर वोटर वोट डालने क्यों जाएं ?
फरीदाबाद को कूड़ाग्राम बन जाने के पीछे कौन कौन हैं..?
मेरा साफ साफ मानना है कि यह साजिशन हुआ. अगर गहन जांच हो तो पता चले कि कूड़े के खेल में छोटे बड़े अफसरों से लेकर कौन कौन ठेकेदार, उनके रहनुमा शामिल हैं..! पार्षदों के अपने खेल चलते रहे, नेताओं के अपने. सत्ता के कई केंद्र बने रहे और इन सबके बीच अफसरों ने खूब मौज ली।  उन्हें क्या..शहर पड़े चूल्हे में, नागरिक जाएं भाड़ में.
 
मैं तो पुरजोर तरीके से यह मांग करता हूं कि निगम बनने से लेकर आज तक जितने भी विकास कार्य हुए हैं, ठेके दिए गए हैं, उन सबकी फोरेंसिक ऑडिट कराई जाए. अभी तक यहां रहे सभी अफसरों, कर्मचारियों की संपत्ति की जांच कराई जाए..*

वोटर्स की उदासीनता की एक वजह लगातार चुनावों का होना भी है. मई में लोकसभा, फिर विधानसभा और अब नगर निगम..दस महीनों में तीन चुनाव..! और ऊपर से तुर्रा यह कि व्यवस्था में कोई सुधार नहीं. लोकसभा चुनाव में कूड़ा मुद्दा बना तो चुनाव के तुरंत बाद कूड़ा इमरजेंसी लगा दी गई, पर हुआ क्या...एक जगह से कूड़ा उठा दूसरी जगह फेंक दिया. बिना किसी तैयारी के अपने चहेते नए नए ठेकदारों को काम दे दिया गए, फिर कैंसिल किए गए...किसे बुद्धू बना रहे थे आप..! ईमानदार जांच हो तो पता चले कि इस खेल में कितना बंदर बांट हुआ..! कूड़ा व्यवस्था तो नहीं सुधरी न सुधरेगी...निगम की आने वाली नई टीम को इन सब मुद्दों पर फोकस करना होगा.

 प्रत्याशी वोटर्स में अपेक्षित उत्साह नहीं जगा पाए. इतने कम समय में वोटर्स तक पहुंच ही नहीं सकते थे, नहीं पहुंच पाए. 

बहरहाल, जो हुआ, हुआ..पर, 12 मार्च को चुनाव परिणाम के बाद निगम में सत्तासीन होने वाली मेयर और पार्षदों के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आने वाली है. वोट डालने भले ही लोग नहीं निकले हों, पर मुद्दों को लेकर उदासीन नहीं हों. न जनता, न नई टीम.

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