फरीदाबाद। समाजसेवी हरीश चन्द्र आज़ाद ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से प्रत्येक चुनावों में भाजपा के नेता खुलेआम मंचों पर एक नारा लगाते है कि बटोगे तो कटोगे इस तरह का राजनितिक नारा धर्मनिरपेक्ष भारत की अखंडता के लिये घातक है। उन्होंने कहा कि भारत का स
विधान इस तरह के नारे की इजाजत नहीं देता। ऐसे नारों पर कानून और चुनाव अधिकारी को पांबदी लगानी चाहिये।
आज़ाद ने कहा कि बात हिन्दुओं को एक करने की है तो कोई भी साधू महात्मा ऐसे वचन कह सकता है अपने घर्म को एक करना हमारा अधिकार है और भारतवर्ष ही क्यों दुनिया के सभी हिन्दुओं को एक करना चाहिये लेकिन इस तरह के नारे राजनितिक मंचों पर नेताओं द्वारा कहने की हजाजत नहीं होनी चाहिये। उन्होंने कहा कि इस तरह राजनितिक मंचों पर नारे का मतलब समझे राजनितिक नारा तो यह होना चाहिये जिससे भारतवासी बंटे नही एक हों। उन्होने कहा कि इस नारे का मतलब है कि हिन्दू एक हो अगर हिन्दू बंटे तो कटेंगे तो क्या यह भारतवर्ष के सविधान धर्मनिरपेक्ष में सभी धर्मों को बाँटने वाला नारा नही है? इसका मतलब भाजपा के नेता धर्मनिरपेक्ष भारत में सभी धर्मों को बाँटना चाहते है? क्या इससे भारत मजबूत होगा। उन्होंने कहा कि यह नारा साफ तौर पर हिन्दूस्तानियों को धर्मों में बाँटने वाला नारा है।
हरीश आज़ाद ने कहा कि ऐसे नारों ने भारतवासियों की सोच ऐसी बनती जा रही है कि वह अपने नेताओं से बच्चों के भविष्य की, भारत के विकास की तथा महंगाई जैसे मुद्दों की बात ही नही करते, एक धर्म किसी पार्टी को इसलिये वोट देता है कि इस पार्टी की वजह से हमारा धर्म सुरक्षित है तो दूसरे धर्म के लोग दुसरी पार्टी को इसलिये वोट करते हैं कि यह पार्टी हमारे धर्म की रक्षा करेगी। पिछले कुछ वर्षों से यह महसूस ही नही हो रहा कि यह वही देश में जिसकी आज़ादी की लड़ाई सभी धर्मों ने एक होकर लड़ी थी या यह वही देश है जिसका सविधान धर्मनिरपेक्ष है।
उन्होंने कहा कि देश प्रदूषण और मच्छरों से होने वाली जानलेवा बिमारियों की जकड़ में फसंता ही जा रहा है, देशवासी मिलावटी जानलेवा खान-पान खाने को मजबूर हो रहे हैं, देश गंदगी के ढेर में डूब रहा है, विकास के नाम से किये गये काम घटिया सामिग्री की वजह से बनते ही टूटते जा रहे हैं, एक चुनाव जीतते ही नेता चुनाव दर चुनाव 100 गुना अमीर होते जा रेह हैं, वोटों का लालच में मुफत का सामान दे देकर देश की अर्थ व्यवस्था डांवाडोल हो रही है लेकिन देशवासियों को ऐसे नारों में उल्झाकर गम्भीर मुद्दों से ध्यान भटकाया जा रहा है। अब समय आ गया है कि देशवासी और अदालतें मिलकर इस देश को धर्म की राजनितिक से हटाकर देश और बच्चों के भविष्य और स्वास्थ्य जीवन की सोच की ओर ले जाया जाये।
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