हरियाणा में चुनावी सरगर्मी बढ़ती जा रही है। विधानसभा चुनाव के नामांकन की प्रक्रिया खत्म होने के साथ ही अब आगामी चुनाव की तस्वीर साफ
हो चुकी है। सत्ताधारी भाजपा ने सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। दूसरी ओर कांग्रेस ने 89 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि भिवानी सीट माकपा के लिए छोड़ी गई है। आप ने भी हर विधानसभा क्षेत्र में अपने चेहरे घोषित किए हैं। इसके अलावा दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने विधायक चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के साथ तो ओम प्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल ने बहुजन समाज पार्टी और गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी के साथ गठबंधन के तहत उम्मीदवार उतारे हैं।
इस बीच कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जहां संबंधित पार्टियों से टिकट कटने पर उम्मीदवार निर्दलीय के रूप में मैदान में उतर गए हैं। हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं है जब पार्टियों से असंतुष्ट लोग स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हों। हरियाणा की राजनीति में निर्दलीय चुनाव लड़ने और जीतने वालों का दिलचस्प इतिहास रहा है।
साल 2000 में हरियाणा में नौवीं विधानसभा के चुनाव कराए गए। इस चुनाव में 519 निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे जिसमें से 11 को जीत मिली। 483 निर्दलीय प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। निर्दलीय जीतने वालों में अनिल विज अंबाला कैंट सीट से, भीम सैन इंद्री से, जय प्रकाश करनाल से, तेजवीर पुंडरी से, दरयाब सिंह झज्जर से, देव राज दीवान सोनीपत से राजिंदर सिंह बिसला बल्लभगढ़ से, उदय भान हसनपुर से, गोपी चंद गुड़गांव से, राम भगत नारनौंद से और मूला राम नारनौल सीट से शामिल थे। वहीं, सबसे बड़े दल इंडियन नेशनल लोकदल को 47 सीटों पर जीत मिली थी। इस चुनाव के बाद इनेलो के ओम प्रकाश चौटाला राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।
10वीं विधानसभा में निर्दलीय उम्मीदवार और निर्दलीय विधायक दोनों की संख्या में कमी आई। 2005 में हुए चुनाव में 442 निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई जिसमें से 10 को ही जीत हासिल हुई। वहीं 411 निर्दलीय उम्मीदवार ऐसे भी रहे जो अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए।
निर्दलीय उतरे दिनेश कौशिक को पुंडरी विधानसभा सीट से, तेजेंद्र पाल सिंह को पाई से, नरेश कुमार को बादली से, बचन सिंह आर्य को सफीदों से, हर्ष कुमार को हथीन से, हबीब-उर-रहमान को नूंह से, सुखबीर सिंह को सोहना से, शकुंतला भगवारिया को बावल से, नरेश यादव को अटेली और राधेश्याम को नारनौल सीट से जीत मिली। 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 67 सीटें मिलीं। अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली कांग्रेस की ओर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री बने।
2009 में हुए 11वीं विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ने वालों की संख्या तो बढ़ी लेकिन निर्दलीय विधायकों की संख्या घट गई। इस बार कुल 513 प्रत्याशी बतौर निर्दलीय उतरे जिसमें से 7 विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। वहीं 493 निर्दलीय अपनी जमानत राशि भी नहीं बचा सके। 7 निर्दलीय विधायकों में सुलतान पुंडरी सीट से, ओम प्रकाश जैन पानीपत ग्रामीण से, प्रहलाद सिंह गिल्लन खेरा फतेहाबाद से, गोपाल कांडा सिरसा से, फरीदाबाद एनआईटी से शिवचरण लाल शर्मा, गुड़गांव से सुखबीर कटारिया और हथीन से जलेब खान शामिल थे। 2009 के चुनाव में कांग्रेस 40 सीटों पर सिमट गई। भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सके। राज्य में सरकार का गठन हुआ तो गोपाल कांडा, शिवचरण लाल शर्मा, सुखबीर कटारिया, ओम प्रकाश जैन जैसे निर्दलीय विधायकों ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। नई सरकार के शपथ ग्रहण के दो हफ्ते भीतर भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस के पार्टी में उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई को छोड़कर छह में से पांच विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए।
2014 में 12वीं विधानसभा के चुनाव कराए गए थे। इस चुनाव में भी निर्दलीय चुनाव लड़ने वालों की संख्या बढ़ी लेकिन निर्दलीय विधायकों की संख्या में कमी आई। 2014 में 603 निर्दलीय प्रत्याशियों में से महज 5 ही विधायक बन पाए। 587 स्वतंत्र उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। जिन निर्दलीय प्रत्याशियों को सफलता मिली उनमें जय प्रकाश (जेपी) कलायत से दिनेश कौशिक पुंडरी से रविंदर मछरौली समालखा से जसबीर देसवाल सफीदों से और रहीश खान पुन्हाना से शामिल थे।
2019 में हुए 13वीं विधानसभा चुनाव में कुल 1169 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे, जिनमें से 377 निर्दलीय थे। 377 निर्दलीय उम्मीदवारों से 358 की जमानत जब्त हो गई थी। 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को सबसे ज्यादा 40 सीटें मिली थीं। कांग्रेस 31 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी। विधानसभा चुनाव में जजपा 10 सीटें जीतने में सफल रही। इसके अलावा सात निर्दलीय, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) एक और हरियाणा लोकहित पार्टी को एक सीट पर जीत मिली थी। चुनाव जीतने वाले सात निर्दलीय में पुंडरी से रणधीर गोलेन, महम से बलराम कुंडू, रानियां से रणजीत सिंह, बादशाहपुर से राकेश दौलताबाद, दादरी से सोमवीर सांगवान और नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर और पृथला से नयन पाल रावत शामिल थे।
निर्दलीय विधायकों में से कई विधायकों ने समय-समय पर भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन दिया। पिछली बार के जीते कुछ निर्दलीय विधायकों को अब भाजपा और कांग्रेस से भी टिकट मिले हैं।
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