हरियाणा के लोकसभा चुनाव में इस बार 5.34 फीसदी कम मतदान ने सभी राजनीतिक दलों को असमंजस में डाल दिया है। सभी अपने-अपने हिसाब से गुणा-भाग लगाकर जीत के दावे कर रहे हैं। मतदान कम या ज्यादा होने से किस दल को फायदा या नुकसान हुआ है इस बारे में तस्वीर साफ नहीं है। परिणाम मिला-जुला ही रहा है।
2019 में हरियाणा में 70.34 फीसदी मतदान हुआ तो भाजपा को 58.2 फीसदी वोट हासिल हुए और भाजपा ने राज्य की सभी दस सीटों पर कब्जा जमाया। कांग्रेस 28.5 फीसदी पर ही आकर सिमट गई। इसी तरह 2014 में जब 71.45 फीसदी मतदान हुआ तो भाजपा को सात सीटें मिलीं और वोट शेयर 34.8 फीसदी रहा। हालांकि 2014 के चुनाव में मोदी की प्रचंड लहर थी और कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी।
वहीं, 2019 में बालाकोट, सर्जिकल स्ट्राइक और राष्ट्रवाद की लहर थी। उधर मतदान कम होने से कांग्रेस को उम्मीद बंधी है। कांग्रेस का कहना है कि इस बार चुनावी नतीजे काफी बेहतर होने वाले हैं। कांग्रेस नेताओं ने दावा किया है कि वह राज्य में छह से आठ सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं। वहीं, दो चुनावों से पहले 2009 में जब मतदान 67.49 फीसदी हुआ तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को दिखा। कांग्रेस का वोटशेयर 41.8 फीसदी रहा और राज्य में नौ सीटों पर जीत दर्ज की। इससे पहले 2004 में जब मतदान 66.72 फीसदी हुआ तो उस दौरान भी कांग्रेस ने नौ सीटों पर जीत हासिल की और 42 फीसदी मत हासिल किए।
कम मतदान से भले ही कांग्रेस खुद को मजबूत मान रही हो, मगर पार्टी के लिए इतना आसान नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि पिछले चुनाव के मुकाबले कुल मतदान 5.34 फीसदी घटा है। यदि भाजपा को इतने ही वोटों का नुकसान हुआ है तो बड़े अंतर से जीत हासिल करने वाली सीटों पर भाजपा का जीत का मार्जिन कम हो सकता है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को करीब 30 फीसदी
ज्यादा वोट मिले थे। इतने बड़े जीत के अंतर को पाटना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। यह एक ही स्थिति में संभव है जब एक तरफा मतदान हुआ हो। जबकि अधिकतर सीटों पर मुकाबला कांटे का रहा है। वहीं, यह मान लें कि इतनी फीसदी वोटों का फायदा कांग्रेस को हुआ है तो कांग्रेस उन सीटों पर कमाल कर सकती है, जहां पिछले चुनाव में जीत का अंतर कम रहा था। पिछले चुनाव में राज्य की
सिर्फ दो सीटें ऐसी थी, जहां जीत का मार्जिन थोड़ा कम था। रोहतक में सात हजार वोटों का अंतर था, जबकि सोनीपत में डेढ़ लाख वोटों का। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इन दोनों सीटों पर कांग्रेस भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं।
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