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मातृ दिवस - सनातन धर्म में प्रत्येक दिवस मातृ दिवस। मां ईश्वर का अद्वितीय रूप

Posted by : pramod goyal on : Saturday 11 May 2024 0 comments
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 राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सराय ख्वाजा फरीदाबाद की जूनियर रेडक्रॉस, गाइड्स और सैंट जॉन एंबुलेंस ब्रिगेड ने प्राचार्य रविंद्र कुमार मनचंदा के निर्देशानुसार मातृ दिवस के अवसर पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में अध्यापकों और जूनियर रेडक्रॉस सदस्य छात्राओं ने मां को त्याग और ममता की मूर्ति बताया। मदर्स डे एक ऐसा दिवस जिस दिन बच्चे अपनी मां के सम्मान के लिए उन्हें स्पेशल फील कराते हैं। मां का ऋण कोई भी कभी नहीं उतार सकता है। मां शब्द ही ऐसा है जिसमें बच्चे का पूरा संसार बसता है जे आर सी और सैंट जॉन एंबुलेंस ब्रिगेड प्रभारी प्राचार्य रविंद्र कुमार मनचंदा ने कहा कि मां को हमारे पु


राणों में अंबा, अम्बिका, दुर्गा, देवी सरस्वती, शक्ति, ज्योति, पृथ्वी आदि नामों से संबोधित किया गया है। मां को माता, मात, मातृ, अम्मा, जननी, जन्मदात्री, जीवनदायिनी, जनयत्री, धात्री, प्रसू आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। रामायण में श्रीराम अपने श्रीमुख से मां को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं। वे कहते हैं जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी। अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है तथा महाभारत में भी जब यक्ष धर्मराज युधिष्ठर से प्रश्न करते हैं कि भूमि से भारी कौन तब युधिष्ठर उत्तर देते हैं माता गुरुतरा भूमेरू। अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं। यह  दिवस सम्पूर्ण मातृ शक्ति को समर्पित एक महत्वपूर्ण दिवस है जिसका ममत्व एवं त्याग घर ही नहीं बल्कि सबके घट को उजालों से भर देता है। प्रधानाचार्य मनचंदा ने कहा कि मां का त्याग, बलिदान, ममत्व एवं समर्पण अपनी संतान के लिए इतना विराट है कि पूरा जीवन भी समर्पित कर दिया जाए तो मां के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है। संतान के लालन पालन के लिए हर दुख का सामना बिना किसी शिकायत के करने वाली मां के साथ बिताए दिन सभी के मन में आजीवन सुखद व मधुर स्मृति के रूप में सुरक्षित रहते हैं। प्राचार्य मनचंदा ने कहा कि भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकता इसलिए उसने मां को बनाया। एक मां हमारे जीवन की हर छोटी बड़ी आवश्यकताओं का ध्यान रखने वाली और उन्हें पूरा करने वाली देवदूत होती है। मां परमात्मा की अद्वितीय रचना है मां ही मन्दिर है मां ही पूजा है और मां ही तीर्थ है। आज छात्राओं ने अपने संबोधन में मां को परमपिता परमेश्वर की सर्वोत्कृष्ठ रचना बतलाते हुए विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किए। प्राचार्य रविंद्र कुमार मनचंदा ने प्राध्यापिका दीपांजलि, गीता,  सुशीला बेनीवाल का तथा सभी छात्र व छात्राओं का मां के बहुत ही सजीव चित्रण एवम कक्षा कक्ष में बहुत ही हृदय स्पर्शी कार्यक्रम प्रस्तुत कराने के लिए अभिनंदन करते हुए आभार व्यक्त करते हुए कहा कि संतान मां के उपकार से कभी भी उऋण नही हो सकती। पुत्र कुपुत्र हो सकता है परन्तु माता कभी कुमाता नहीं हो सकती। प्रसिद्ध लेखक ई.एम् फोरस्टर ने लिखा है कि मां त्याग और प्रेम का प्रतीक है और उन्हें विश्वास हैं यदि सम्पूर्ण सृष्टि की

माताएं मिल जाए तो युद्ध कभी नहीं होगा। छात्राओं ने निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रतिभागिता की तथा अंशिका को प्रथम, नेहा को द्वितीय एवं करते हुए नंदिनी को तृतीय घोषित किया गया।

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