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हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत को सहेज रही है आपणा घर की प्रदर्शनी

Posted by : pramod goyal on : Monday 12 February 2024 0 comments
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 सूरजकुंड (फरीदाबाद), 12 जनवरी। 37वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में विरासत द्वारा आपणा घर में लगाई गई सांस्कृतिक प्रदर्शनी में हरियाणा का हस्तशिल्प आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां पर विरासत प्रदर्शनी के माध्यम से आपणा घर को विशेष रूप से सजाया गया है। हरियाणा के लोक पारंपरिक विषय-वस्तुएं पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। हरियाणा के आपणा घर में हरियाणवी लोक परिधान की प्रदर्शनी, हरियाणा की बुणाई कला प्रदर्शनी सबका मन मोह रही है। इतना ही नहीं लोक पारंपरिक हस्तकला के अनेक हरियाणवी नमूने यहां पर प्रदर्शित किए गए हैं।


विरासत निदेशक डा. महासिंह पूनिया ने बताया कि विरासत प्रदर्शनी में हरियाणा के गांवों से जुड़ी हुई सभी प्रचीन वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है जो अब लुप्तप्राय हो चुकी हैं। विरासत हेरिटेज विलेज का प्रयास है कि अपनी आने वाली पीढिय़ों के लिए इन वस्तुओं को संजोकर रखा जा सके, जिससे वे इनको देखकर इन पर गर्व कर सकें। यहां पर डायल का प्रदर्शन किया गया है। पुराने समय में इसके दोनों तरफ रस्सी बांधकर दो व्यक्ति तालाब में से ऊंची भूमि पर इससे पानी खींचने का काम किया करते थे। इसी तरह कुंए से पानी खींचने के लिए डोल प्रयोग किया जाता था। यहां पर प्रदर्शित ओरणा किसानों द्वारा गेहूं तथा फसल की बुवाई के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। यहां पर प्रदर्शित जेली एवं टांगली किसान द्वारा बिखरी हुई फसल को एकत्रित करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था। यहां पर प्रदर्शित लकड़ी, लोहे व पीतल की घंटियां, गाय, भैंसों, हाथी तथा रथ के लिए प्रयोग में लाई जाती रही हैं। प्राचीन समय में कुंए में जब कोई विषय-वस्तु गिर जाती थी, तब उसको कुंए से बाहर निकालने के लिए प्रयोग होने वाले कांटे एवं बिलाई को भी यहां दिखाया गया है। विरासत प्रदर्शनी में छापों का प्रदर्शन भी किया गया है। यह डिजाईन छपाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले लकड़ी के बने होते हैं। कपड़ों की रंगाई के लिए इनका प्रयोग किया जाता रहा है। प्रदर्शनी में अंग्रेजों के आने से पहले देहात में अनाज तथा तेल आदि की मपाई के लिए जिन मापकों का प्रयोग किया जाता था, उनका भी प्रदर्शन किया गया है। छटांक, पाव, सेर, दो सेर, धड़ी, मण इनके आकार के अनुसार अनाज को मापने के लिए प्रयोग किए जाते रहे हैं। न्यौल ऊंट के पैर पर बांधने के लिए इसका प्रयोग किया जाता रहा है। प्रदर्शनी में गांवों में महिलाओं द्वारा लडक़ी को दान में दिए जाने वाली फुलझड़ी को भी दिखाया गया है। इसी तरह से बोहिया भी देहात में प्रयोग होने वाली महत्वपूर्ण वस्तु है। यह कागज, मुलतानी मिट्टी को गलाकर बनाए जाने वाली वस्तु है। इसी प्रकार यहां पर प्रदर्शित खाट एवं पीढ़ा हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। पीढ़ा, खटौला, खाट, पिलंग, दैहला आदि घरों, बैठकों एवं चौपालों में प्रयोग किए जाते रहे हैं। यहां पर सैंकड़ों वर्ष पुराने बर्तन भी प्रदर्शित किए गए हैं।

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