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सिक्की आर्ट से नदियों की घास को उपयोगी बनाकर दी नई पहचान

Posted by : pramod goyal on : Thursday 15 February 2024 0 comments
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 सूरजकुंड (फरीदाबाद), 15 फरवरी। बिहार राज्य के सीतामढ़ी क्षेत्र की रहने वाली 33 वर्षीय ज्योत्सना ने नदियों में उगने वाली सिक्की घास को अपने हुनर से न केवल उसे उपयोगी बनाया, बल्कि आर्थिक तरक्की का आधार भी बना लिया है। घास से बनी देवी देेवताओं, ऐतिहा


सिक स्थलों और ज्वैलरी अब हजारों की कीमत में बिक रही है। इसी सिक्की घास की कला को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने ज्योत्सना को वर्ष 2014 में राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा है। ज्योत्सना अब अपनी इस कला पर पीएचडी भी कर रही हैं। उन्होंने पिछले 24 वर्षों में इस कला को देश के विभिन्न हिस्सों में पहचान दिलाने के साथ-साथ अमेरिका, इथोपिया, जर्मनी और दुबई तक पहुंचाने का कार्य किया हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि ज्योत्सना 50 से अधिक महिलाओं को अपने साथ जोडक़र उन्हें भी आत्मनिर्भर बना चुकी हैं।

बॉक्स:-
विदेहराज राजा जनक के काल से हुआ सिक्की कला का उद्गम
शिल्पकार ज्योत्सना ने बताया कि सिक्की कला राजा जनक के कार्यकाल से चली आ रही है। पुराणोंं में वर्णित है कि सिक्की कला का उदय सीतामढ़ी से हुआ है। विदेहराज राजा जनक ने अपनी पुत्री वैदेही को विदाई के समय मिथिला की महिलाओं से विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां बनवाकर दी थीं, जिसमें सिक्की कला की पौती, पेटारी, डिब्बी आदि शामिल थी। तभी से इस कला का उद्गम माना जाता है। उन्होंने बताया कि वह सिक्की कला में ही पीएचडी भी कर रही हैं।

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