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पहले गर्मियों की छुट्टियों में बच्चे अपने मां-बाप के साथ दादा दादी, नाना नानी मामा मामी के घर छुट्टियां बिताने जाते थे। पर्यटन यात्रा पर जाकर खूब मौज मस्ती करते थे लेकिन आज बच्चों से यह मौज मस्ती व आनंद छिन गया है। इसका सबसे बड़ा कारण स्कूल प्रबंधकों द्वारा गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों को दिया गया भारी भरकम व उनकी समझ से परे दिया गया होमवर्क। जिस वजह से बच्चे अपने दादा दादी व नाना नानी के घर नहीं जा पा रहे हैं अगर कुछ दिन के लिए जाते भी हैं तो वहां भी होमवर्क करने व करवाने की उधेड़बुन में लगे रहते हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि स्कूल प्रबंधक बच्चों को जो होमवर्क देते हैं, जिसे देखकर बच्चों के साथ साथ उनके मां-बाप के भी होश उड़ जाते हैं उसका औचित्य क्या है? नर्सरी, एलकेजी यूकेजी से लेकर प्राथमिक क्लास के बच्चों को ऐसा होमवर्क करने को दिया जा रहा है जिसके बारे में उनको कुछ भी नॉलेज नहीं होती है। लेकिन होमवर्क तो पूरा करना है। अतः बच्चे होमवर्क पूरा करने के लिए मां-बाप का सहारा लेते हैं। जिनके मां बाप पढ़े लिखे होते हैं वे तो होमवर्क पूरा करने में या कराने में मदद कर देते हैं लेकिन जिन बच्चों के मां-बाप ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते हैं वे पैसा देकर प्रोफेशनल लोगों से होमवर्क पूरा कराते हैं। हरियाणा अभिभावक एकता मंच के प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा का कहना है कि गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों को होमवर्क देना ही नहीं चाहिए। पूरे शिक्षा सत्र में सिर्फ 25,,30 दिन ही ग्रीष्मकालीन अवकाश के रूप में बच्चों को मिलते हैं जिसमें वे नाना नानी के घर जाने या माता पिता के साथ पर्यटन पर जाकर मौज-मस्ती के लिए जाना चाहते हैं। उनसे ऐसा अवसर छीनना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। मंच के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट ओपी शर्मा व लीगल एडवाइजर बी एस बिरदी का कहना है कि स्कूल प्रबंधक होम वर्क देकर
सीबीएसई व हरियाणा शिक्षा नियमावली के उस नियम का उल्लंघन कर रहे हैं जिसमें कहा गया है कि प्री प्राथमिक कक्षा व प्राइमरी क्लास तक के बच्चों को होमवर्क देना ही नहीं चाहिए। लेकिन स्कूल प्रबंधक अपने स्कूल का स्टेटस सिंबल दिखाने व प्रोफेशनल लोगों व दुकानदारों की कमाई कराने के लिए भारी-भरकम होमवर्क देते हैं। नेट क्वालिफाइड पीजीटी सरकारी टीचर डिंपल गौड़ कहती हैं कि एक और हरियाणा सरकार अपने सरकारी स्कूलों के बच्चों को होमवर्क ना देकर उनको अपने नाना नानी के घर व पर्यटन यात्रा पर जाने का मौका दे रही है तो दूसरी ओर प्राइवेट स्कूल संचालक खासकर सीबीएसई स्कूल वाले बच्चों को ग्रीष्म अवकाश में होम वर्क के रूप में इलेक्ट्रिक सर्किट, एम्यूजमेंट पार्क का थ्रीडी मॉडल, दिल्ली मेट्रो और फ्लाईओवर का प्रोजेक्ट बनाने, थर्माकोल का एफ़िल टॉवर बनाने, कंप्यूटर का वर्किंग मॉडल, संस्कृति से गणित के फ़ार्मूलों की डिक्शनरी बनाने का प्रोजेक्ट दे रहे हैं। इससे
प्रोफेशनल लोगों की खूब कमाई हो रही है। ऐसे प्रोजेक्ट बने बनाए मार्केट में मिल रहे हैं जिन्हें अभिभावक मजबूरी में अपने बच्चों के लिए खरीद रहे हैं। ऎसे प्रोजेक्ट बाद में स्कूल के शो केस की शोभा बढ़ाते हैं या स्टोर में फेंक दिए जाते हैं। अभिभावक कुसुम बंसल व परमेश्वरी का कहना है कि जो होमवर्क 10,11वीं छात्रों के लिए भी बहुत मुश्किल होता है उसे छोटी कक्षा के छात्रों को देना सही नहीं है। अब प्रश्न यह है कि अभिभावक इसका विरोध क्यों नहीं करते। इस पर मंच का कहना है कि अभिभावकों के मन में स्कूल वालों का बैठा अंजाना डर कि "होमवर्क पूरा न करने पर
बच्चे को परेशान किया जाएगा व बच्चे का ग्रेड ख़राब कर दिया जाता है."
जबकि हकीकत यह है कि होमवर्क से बच्चों के ग्रेड से कोई लेना-देना नहीं है, होमवर्क पर बच्चों को अंक नहीं दिए जाते। मंच ने मुख्यमंत्री शिक्षा मंत्री, चेयरमैन सीबीएसई व चेयरमैन राष्ट्रीय बाल संरक्षण व अधिकार आयोग से मांग की है कि नियमों के विरुद्ध बच्चों को होमवर्क देने वाले स्कूल संचालकों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए।
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