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शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को श्रद्धांजलि दी

Posted by : pramod goyal on : Tuesday 23 March 2021 0 comments
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फरीदाबाद 23 मार्च ज्वाइंट ट्रेड यूनियन काउंसिल फरीदाबाद के बैनर के तले आज सेक्टर 12 में शहीद-ए-आजम भगत सिंह राजगुरु सुखदेव उनके द्वारा देश की आजादी के लिए


दी गई कुर्बानी को करते हुए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। सबसे पहले सभा में उपस्थित लोगों ने तीनों महान क्रांतिकारियों की तस्वीरों पर माल्यार्पण करके गगनभेदी नारे लगाए। उपस्थित जन समुदाय भगत सिंह, राजगुरु सुखदेव अमर रहे के नारे लगा रहे थे। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता एटक के कामरेड विशंभर सिंह, सीटू के कामरेड निरंतर पराशर, हिंद मजदूर सभा के डीएन मिश्रा इंटक के हुकमचंद आईसीटी यू के कामरेड जवाहरलाल ने संयुक्त रूप से की।जबकि कार्यक्रम का संचालन काउंसिल के कन्वीनर लालबाबू शर्मा ने किया। सभा को संबोधित करते हुए एटक के जिला प्रधान आरएन सिंह ने भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को महान क्रांतिकारी बताते हुए उनके पद चिन्हों पर चलने का आह्वान किया। इन तीनों में सचमुच देशभक्ति का कैसा जुनून था।  देश की आजादी के लिए मौत को गले लगाते वक्त भी इनके होठों पर देश भक्ति का गीत था। भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को 90 साल पहले आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दे दी थी। सभा को संबोधित करते हुए सीटू के जिला उपाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह डंगवाल ने भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आज से 90 साल पहले ब्रिटिश शासकों ने जन आक्रोश भड़कने के डर से भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी का दिन चुपचाप तरीके से पीछे खिसका दिया। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों को 24 मार्च 2031 की सुबह की जगह 23 मार्च 1931 की शाम को ही फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। अंग्रेजों ने उनका अंतिम संस्कार चुपचाप ढंग से सतलुज के किनारे हुसैनीवाला में करने का प्रयास किया। इस कदम का आभास पाकर लोग मौके पर पहुंच गए। अंग्रेजी हुकूमत शहीदों की आधी जली चिताओं को छोड़कर वहां से भाग गए थे। इसके विरोध में उत्तर भारत में शहीदों के लिए 24 मार्च से 26 मार्च तक 1931 में 3 दिन की पूर्ण हड़ताल रही थी। उन्होंने  बताया कि भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को गांव खटकड़ कला तहसील बांगा जिला जालंधर में हुआ था। इससे पहले इनके पिता किशन सिंह लायलपुर  जो अब फैसलाबाद पाकिस्तान में वहां चले गए थे। 1950 में वहां नई बस्तियों वाले इलाके में बहुत बड़ा किसान आंदोलन हुआ था। इसमें लाला लाजपत राय, अजीत सिंह ने भाग लिया था। भगत सिंह ने अपने बचपन में सबसे ज्यादा प्रेरणा अपने चाचा से हासिल की थी। भगत सिंह को बचपन में पढ़ने का बड़ा शौक था। उनकी पढ़ने की ललक आगे बढ़ती गई। गंभीर अध्ययन की बदौलत ही भगत सिंह ने देश के क्रांतिकारी आंदोलन में जन आंदोलन की अवधारणा पैदा करके उसे सफल नेतृत्व देने की कोशिश की। उनके अध्ययन का सिलसिला फांसी के बुलाए तक जारी रहा। भगत सिंह एक युगांत कारी व्यक्ति थे। उन्होंने स्वयं को प्रतिक्षण क्रांति के महायज्ञ में व्यस्त रखा । भगत सिंह का व्यक्तित्व में बहुत गतिशीलता थी। उन्हें विगत, वर्तमान व भविष्य को दृष्टिगत रखते हुए तत्कालीन आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक परिवेश के बारे में एक तर्कसंगत राय बनाने राष्ट्रीय संघर्ष के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को समझने और विशेषण करने में  उन्हें कभी भी मानसिक असमानता का सामना नहीं करना पड़ा। शहीदे आजम ने अपने व्यक्तिगत आकांक्षाओं को पीछे धकेल कर दल को आगे बढ़ाया। उन्होंने कभी भी दल और आंदोलन से संबंधित निर्णय नहीं लिए। व्यक्ति से पार्टी और संगठन को हमेशा ऊपर रखा। भगत सिंह से पूर्व के क्रांतिकारी बिखरे हुए थे। असंगठित आंदोलन स्वाधीनता आंदोलन में प्रभावी भूमिका निभा नहीं रहा था। उन्होंने बिखरे हुए दलों को एकता के सूत्र में पिरोना और सांगठनिक ढांचे में जनवादी कार्यपद्धति को जन्म देने का काम बखूबी किया। भगत सिंह अपने जीवन के 24 साल भी पूरे नहीं कर पाए थे। फिर भी राजनीतिक परिपक्वता में वह बेमिसाल थे। अपने विवेक और राजनीतिक सूझबूझ की अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं बयानों एवं पत्रों में बखूबी दिखाई देती है। राजनीति, समझौता, अराजकतावाद, ईश्वर, धर्म, स्वाधीनता, संविधान, भाषा साहित्य, क्रांति, युद्ध आत्महत्या, और दर्शन आदि विषयों पर उन्होंने अपनी लेखनी उठाई है। इस सभा  को हिंद मजदूर सभा के राजपाल डांगी ने संबोधित किया उन्होंने उपस्थित जन समुदाय से भगत सिंह राजगुरु सुखदेव से प्रेरणा लेते हुए मजदूरों के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने का आह्वान किया सभा को इंटक के हुकमचंद बेनीवाल ने भी संबोधित किया इसके साथ साथ आईसीटी यू के कामरेड जवाहरलाल नौजवान सभा के मिथिलेश, रिटायर कर्मचारी संघ के नवल सिंह, महिला नेत्री कमलेश चौधरी कामरेड शिवप्रसाद और कर्मचारी नेता धर्मवीर वैष्णव विजय झा, वीरेंद्र पाल, दीपक, दिनेश पाली, प्रवीण कुमार, सुरेंद्र मिश्रा ने भी संबोधित किया।

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