HEADLINES


More

विश्व ब्रेल दिवस - ब्रेल दृष्टि बाधित जनों के लिए वरदान

Posted by : pramod goyal on : Monday 4 January 2021 0 comments
pramod goyal
Saved under : , ,
//# Adsense Code Here #//

 राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय एन एच तीन फरीदाबाद में प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा की अध्यक्षता में विश्व ब्रेल दिवस पर जूनियर रेडक्रॉस और सैंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड के सौजन्य से जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। जूनियर रेडक्रॉस, ब्रिगेड प्रभारी प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने बताया कि आज विश्व ब्रेल दिवस मनाया जा रहा है। दृष्टि बाधित लोगों के लिए ब्रेल लिपि विकसित करने वाले लुई ब्रेल की जयंती के अवसर पर यह दिवस मनाया जाता है। लुई ब्रेल का जन्म उत्तरी फ्रांस के


कूपवरे शहर में चार जनवरी 1809 को हुआ था। प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने कहा कि ब्रेल एक लेखन पद्धति है, यह नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए सृजित की गई थी। ब्रेल एक स्पर्शनीय लेखन प्रणाली है इसे एक विशेष प्रकार के उभरे कागज़ पर लिखा जाता है। इसकी संरचना फ्रांसीसी नेत्रहीन शिक्षक और आविष्कारक लुइस ब्रेल ने की थी। इन्हीं के नाम पर इस पद्धति का नाम ब्रेल लिपि रखा गया है तीन वर्ष की अल्प आयु में एक दुर्घटना में उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। इसके उपरांत छह उभरे हुए बिंदुओं की भाषा विकसित की गई जिसे ब्रेल के नाम से जाना जाता है। लुई ने मात्र 15 साल की उम्र में ही ब्रेल लिपि की खोज की थी। ब्रेल लिपि के अंतर्गत उभरे हुए बिंदुओं से एक कोड बनाया जाता है, जिसमें 6 बिंदुओं की तीन पंक्तियां होती है। इन्हीं में इस पूरे सिस्टम का कोड छिपा होता है। कहा जाता है कि ब्रेल लिपि का विचार लुई ब्रेल के दिमाग में नेपोलियन की सेना के एक कैप्टन चार्ल्स बार्बियर के कारण आया था, जो उनके स्कूल के दौरे पर आए थे। उन्होंने बच्चों के साथ 'नाइट राइटिंग' नाम की तकनीक साझा की थी जिसकी मदद से सैनिक दुश्मनों से बचने के लिए उपयोग में लाया करते थे। इसके अंतर्गत वे उभरे हुए बिंदुओं में गुप्त संदेशों का आदान-प्रदान करते थे। यह तकनीक अब कंप्यूटर तक पहुंच गई है। ऐसे कंप्यूटर्स में गोल व उभरे बिंदू जिस कारण दृष्टिहीन लोग अब तकनीकी रूप से भी मजबूत हो रहे हैं। विद्यालय में आज प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा और कॉर्डिनेटर प्राध्यापिका जसनीत कौर ने विश्व ब्रेल दिवस के अवसर पर छात्राओं द्वारा निशा, खुशी, अंकिता और सिमरन द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स जिस में लुई ब्रेल द्वारा ब्रेल लिपि की खोज करने और दृष्टि बाधित दिव्यांगो को आत्मनिर्भरता के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिलती है, की प्रशंसा की। प्राचार्य ने कहा कि लुई ब्रेल के आविष्कार ने पुनः यह प्रमाण दिया कि मनुष्य चाहे तो किसी भी असम्भव दिखने वाले कार्य को भी अपने पुरुषार्थ से संभव कर सकता है।

No comments :

Leave a Reply