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सिर्फ 21 साल के शहीद वीरेन्द्र ने रॉकेट लगने के बाद भी 5 पाकिस्तानियों को किया था ढेर, आज भी शहीद की बूढी माँ बेटे की याद में बहाती है आंसू

Posted by : pramod goyal on : Friday, 20 July 2018 0 comments
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1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच मस्कोह घाटी में हुए कारगिल युद्ध में फरीदाबाद के गांव मोहना के 21 बर्षीय वीरेन्द्र सिंह ने शहादत दी थी, घर में बूढे मां बाप को छोडकर पहली पोस्टिंग में ही शहीद वीरेन्द्र सिंह को कारगिल युद्ध के लिये मस्कोह घाटी भेज दिया गया, जहां वीरता से लडते हुए वीरेन्द्र सिंह ने रोकेट लगने के बाद भी करीब 5 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिरया और फिर असला बारूद्ध खत्म हो जाने के चलते हमेशा हमेशा के लिये देश की मिट्टी में अमर हो गये। आज शहीद वीरेन्द्र सिंह की मां अपने बेटे को याद करके आंसू बहती हुई दिखती है।
तस्वीरों में दिखाई दे रही ये बूढी आंखें और उनसे छलकते हुए आंसू इस बात के गवाह है कि ये बूढी मां आज भी 19 साल बाद अपने शहीद बेटे वीरेन्द्र सिंह को याद करके रोती है, और रोये भी क्यों न क्योंकि सिर्फ 21 साल की उम्र में पूरे परिवार का लाडला देश के लिये शहीद हो गया। बता दें कि 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच मस्कोह घाटी में हुए कारगिल युद्ध में फरीदाबाद के गांव मोहना के 21 बर्षीय वीरेन्द्र सिंह ने शहादत दी थी। इस युद्ध का नाम ऑपरेशन विजय रखा गया।  भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में यह युद्ध लडा गया था। इस युद्ध में लगभग 30,000 भारतीय सैनिक और करीब 5,000 घुसपैठिए शामिल थे। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। यह युद्ध ऊँचाई वाले इलाके पर हुआ और दोनों देशों की सेनाओं को लडऩे में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच यह पहला सशस्त्र संघर्ष था।
फरीदाबाद के गांव मोहना में रहने वाले शहीद वीरेन्द्र सिंह के परिवार को आज अपने लाडले पर गर्व और फक्र है कि उसने पूरे देश में उनका और उनके गांव का नाम रोशन किया है आज भी मस्कोह घाटी में गांव का नाम लिखा हुआ है औैर दिल्ली के इंडिया गेट पर शहीदों की लिस्ट में उनका बेटा वीरेन्द्र सिंह भी शामिल है।

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