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फरीदाबाद, 20 मार्च। लोधी राजपूत जन कल्याण समिति द्वारा अमर शहीद वीरांगना अवंती बाई लोधी का 163वां बलिदान दिवस मनाया गया। इस अवसर पर एनआईटी अमर शहीद वीरां
गना अवंती बाई लोधी चौक पर उनके चित्र पर पुष्प एवं माला अर्पित कर उन्हें श्रद्धापूर्वक याद किया गया। तत्पश्चात मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद भाजपा ओबीसी सैल के जिलाध्यक्ष भगवान सिंह, लाखन सिंह लोधी सहित अन्य पदाधिकारियों ने पार्क में पौधारोपण किया।लोधी राजपूत जन कल्याण समिति के संस्थापक लाखन सिंह लोधी ने अवंती बाई लोधी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी का जन्म लोधी राजपूत समुदाय में 16 अगस्त 1831 को ग्राम मनकेणी, जमींदार राव जुझार सिंह के यहां हुआ था। वीरांगना अवंतीबाई लोधी की शिक्षा.दीक्षा मनकेणी ग्राम में ही हुई। अपने बचपन में ही इस कन्या ने तलवारबाजी और घुड़सवारी करना सीख लिया था। लोग इस बाल कन्या की तलवारबाजी और घुड़सवारी को देखकर आश्र्यचकित होते थे।
पिता जुझार सिंह ने अपनी कन्या अवंतीबाई लोधी का विवाह सजातीय लोधी राजपूतों की रामगढ़ रियासत के राजकुमार विक्रमादित्य सिंह के साथ करने का निश्चय किया। जुझार सिंह की इस साहसी बेटी का रिश्ता रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिंह ने अपने पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य सिंह के लिए स्वीकार कर लिया।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की आग पूरे देश में फैल चुकी थी। इसी समय रामगढ़ की रानी अवंती बाई ने अंग्रेजों के विरूद्ध सभी को एकजुट होकर लडऩे का आह्वान किया। रानी ने संदेेश के लिए एक कागज का टुकड़ा और चूडियां जमीदारों, मालगुजारों को भिजवाया। जिस कागज पर लिखा था या तो देश की रक्षा के लिए युद्ध करो या फिर घर में चूड़ी पहनकर बैठों।
युद्ध में वीरांगना अवंतीबाई लोधी की मजबूत क्रांतिकारी सेना और अंग्रेजी सेना में जोरदार मुठभेंड हुईं। इस युद्ध में रानी और मंडला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंगटन के बीच सीधा युद्ध हुआ। रानी ने वाडिंगटन पर ऐसा वार किया। जिसमें वह घोड़े से गिर गया तथा घोड़े के दो टुकड़े हो गए। रानी के पुन: वार करने पर एक सिपाही ने अपनी तलवार से इस वार को रोक लिया अन्यथा वाडिंगटन वहीं समाप्त हो गया होता। मंडला का डिप्टी कमिश्नर वाडिंगटन भयभीत होकर भाग चुका था और मैदान रानी अवंतीबाई लोधी के नाम रहा। इसके बाद मंडला भी वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी के अधिकार में रहा।
अपने आपको चारों ओर से घिरता देख वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए अपने अंगरक्षक से तलवार छीनकर स्वयं तलवार भोंककर देश के लिए बलिदान दे दिया। उन्होंने अपने सीने में तलवार भोंकते वक्त कहा कि हमारी दुर्गावती ने जीतेजी वैरी के हाथ से अंग न छुए जाने का प्रण लिया था। इसे न भूलना। उनकी यह बात भी भविष्य के लिए अनुकरणीय बन गई। 20 मार्च 1858 को वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने अपना आत्म बलिदान दे दिया। भारत के इतिहास में इस वीरांगना अवंतीबाई ने सुनहरे अक्षरों में अपना नाम लिख दिया।
इस अवसर पर मुख्य रूप से शंकर लाल आर्य, रूप सिंह लोधी, संजीव कुशवाहा, दिनेश प्रसाद सिंह, जागेश्वर लोधी, नंदकिशोर, प्रेमपाल सिंह आर्य, भूप सिंह आर्य, एम.एल.राजपूत, हरिपाल सिंह राजपूत, धर्मपाल सिंह लोधी, होती लाल लोधी, संजीव राजपूत, जगदीश प्रसाद, ओ.पी. आर्य, जगदीश सिंह, मुकेश कुमार, महीपाल सिंह लोधी, सुरेश, हरीश पाहवा, गौरव शर्मा, बलराम लोधी, भाईलाल लोधी सहित गणमान्य लोग मौजूद थे।
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