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महिला कार्यकर्ता ने प्रधानमंत्री के नाम 13 सूत्री मांगों का ज्ञापन सौंपा

Posted by : pramod goyal on : Monday 8 March 2021 0 comments
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 फरीदाबाद 8 मार्च सेंटर आफ इंडियन ट्रेड यूनियंस सीटू जिला कमेटी फरीदाबाद के तत्वाधान में आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन सेक्टर 12 उपायुक्त कार्यालय के सम्मुख किया गया। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न यूनियन से जुड़ी हुई महिला कार्यकर्ता राजस्थान भवन के सामने एकत्रित हुई। यहां से जुलूस लेकर नारे लगाते हुए उपायुक्त कार्यालय के सम्मुख पहुंची। और देश के प्रधानमंत्री के नाम 13 सूत्री मांगों का ज्ञापन उनके कार्यालय अधीक्षक को सौंपा गया। प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व आंगनवाड़ी वर्कर और हेल्पर यूनियन की प्रधान देवेंद्ररी शर्मा, जनवादी महिला समिति की प्रधान कमलेश चौधरी म दर ग्रुप समिति की प्रधान निज रवि, मिड डे मील की प्रधान गीता, और आशा वर्कर यूनियन की और से नीलम जोशी तथा पूजा गुप्ता ने संयुक्त रूप से किया। इस मौके पर सीटू के जिला प्रधान निरंतर पराशर, जिला उपाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह डंगवाल, जिला सचिव लालबाबू शर्मा, और कामरेड शिवप्रसाद भी उपस्थित रहे। सभा को संबोधित करते हुए सीटू के जिला उपाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह डंगवाल ने बताया कि 8 मार्च का दिन दुनिया भर में पिछले करीब 111 वर्षों से महिला दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। यह दिवस महिलाओं के अधिकारों समानता और मुक्ति के लिए हुए संघर्षों और उपलब्धियों का प्रतीक है। इसकी शुरुआत अमेरिका में मजदूरों के आंदोलन के दौरान महिलाओं की बराबरी के सवाल को लेकर हुई थी। तब महिला मजदूरों ने काम की घंटे निश्चित करने पूरी मजदूरी देने और वोट का अधिकार देने की मांग को उठाया था। तब यह समझ बंन गई थी। कि जब काम बराबर का है। तो दाम भी बराबर के ही मिलनी चाहिए। यह अवधारणा रूस की समाजवादी आंदोलन से पैदा हुई थी। क्योंकि तब महिलाएं फैक्ट्री और कारखानों में  में 15 से 20 घंटे तक दासो  की जैसी स्थिति में काम करने को मजबूर थी। ऐसी हालत में महिलाओं के लिए एक दिन मनाने का फैसला 1910 में डेनमार्क के शहर कोपनहेगन में शुरू में हुए दूसरे अंतरराष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन में संघर्षशील एवं साहसी महिला नेत्री क्लारा जेटकिन के नेतृत्व में लिया गया। था। बाद में इसी फैसले के तहत 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया गया। इस मौके पर महिलाएं अपने संघर्षों की इस गौरवशाली इतिहास की विरासत को याद करती हैं। तथा आने वाली चुनौतियों के खिलाफ संघर्ष का संकल्प लेती हैं। भारत में महिला दिवस की शुरुआत स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हुई थी। बेशक उनके पास आज वोट डालने का अधिकार तो है। पर फैसले लेने वाली संस्थाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत कम है। महिला शिक्षा स्वास्थ्य विज्ञान राजनीति और रोजगार आदि हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी ऊंचाइयों को छू रही हैं। इसके बावजूद रसोईघर का अधिकतम कार्य आज भी महिलाओं को ही करना पड़ता है। अध्यापिका कर्मचारी और अधिकारी होने के बावजूद तथाकथित परंपरा एवं रिवाज के नाम पर पर्दा प्रथा की चारदीवारी में कैद होकर रहने को मजबूर है। परिवार और देश के विकास की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका होने पर भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता बहुत महिलाओं को आज भी नहीं है। पितृसत्ता की मानसिकता से सं


चालित धर्म और संस्कृति के ठेकेदार एवं संस्थाएं लगातार सांस्कृतिक बंधनों रीति-रिवाजों तथा भावनात्मक मामलों की आड़ में आज के आधुनिक युग में भी महिलाओं की मौलिक अधिकारों पर हमले कर रहे हैं। छेड़छाड़ एवं शोषण बलात्कार की तथा मंडल की घटनाओं में भारी बढ़ोतरी हो रही हैं। सामूहिक बलात्कार के मामलों में हरियाणा पूरे देश में दूसरे स्थान पर हैं।जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पिछला साल हम सब के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण रहा कोरोना महामारी के संकट में सरकारों की आमिर परस्त नीतियों ने  जहां करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छीन ली वही चंद अरबपतियों की दौलत कई गुना बढ़ा दी है। बड़े-बड़े संघर्षों से हासिल किए गए मजदूरों के कानूनों को पूरी प्रक्रिया को बदल दिया गया है। इसी प्रकार कृषि विरोधी काले कानूनों के जरिए किसानों की बेशकीमती जमीन हथियाने उद्योगों के लिए  सस्ते मजदूर उपलब्ध करवाने तथा  राशन वितरण प्रणाली को खत्म करने का काम किया जा रहा है। पेट्रोल डीजल रसोई गैस और खाने-पीने की चीजों के दाम पर बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है। और बसों के किराए में भारी बढ़ोतरी हुई है। हमारे देश के नौ रत्नों जैसे बी,, एस, एन, एल,  बी पी सी एल सहित अधिकतर क्षेत्रों को निजी हाथों में बेच दिया गया है। ऐसे में महिलाओं की स्थिति बदतर होती जा रही है। उनके लिए रोजगार के अवसर घटे हैं  काम के घंटे बड़े बड़े हैं। महिलाओं को घर संभालने और बच्चे पालने तक सीमित करने की कोशिशें हो रही हैं।ऐसी हालत में महिला दिवस एक मौका है जब पुरुषों को भी समाज की आधी आबादी यानी महिलाओं को समानता स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों तक पहुंचाने के संघर्षों में योगदान करने के लिए संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर आगे आना चाहिए। क्योंकि खराब से खराब हालातों में भी महिलाओं ने सिद्ध किया है।  कि वह अबला नहीं सबला हैं। मांग पत्र पर प्रकाश डालते हुए लालबाबू शर्मा ने बताया कि कामकाजी महिलाओं की मुख्य मांगों में महिलाओं को मजदूरों और किसानों के रूप में काम को मान्यता दी जाए। महिलाओं के अवैतनिक या कम वेतन वाले काम को जीडीपी में शामिल किया जाए। इसके साथ-साथ योजना कर्मियों को मजदूरों कर्मचारियों के रूप में नियमितीकरण किया जाए। और 45 अाई एलसी की सिफारिशों के अनुसार तुरंत न्यूनतम वेतन और सामाजिक लाभ दिया जाए। महिलाओं के लिए सभी क्षेत्रों में समान काम का समान वेतन सूचित किया जाए। सभी कार्य स्थलों पर यौन हिंसा और उत्पीड़न की रोकथाम की जाए। इसके लिए कड़े कानून बनाए जाएं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रोकथाम के लिए न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिश को लागू किया जाए। असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं सहित तमाम  महिलाओं को प्रसूति लाभ सहित सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए। इसके अलावा सभी निर्वाचित निकायों में महिलाओं को 33% आरक्षण देने के लिए कानून आ जाए। सार्वजनिक क्षेत्र और सेवाओं का निजीकरण बंद किया जाए। सभा को आंगनवाड़ी वर्कर यूनियन की जिला प्रधान देवेंद्र शर्मा जिला सचिव मालवती जिले की ज्वाइंट सेक्रेट्री सुरिंदेरी, आशा वर्कर यूनियन की नीलम जोशी पूजा गुप्ता मिड डे मील वर्कर यूनियन की गीता जनवादी महिला समिति की कमलेश चौधरी, मदर ग्रुप सीमित की निजरवी ने भी संबोधित किया।

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