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किसान-मजदूर एकता दिवस का आयोजन किया

Posted by : pramod goyal on : Saturday 27 February 2021 0 comments
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 फरीदाबाद 27 फरवरी सेंटर आफ इंडियन ट्रेड यूनियन  सीटू जिला कमेटी फरीदाबाद ने आज शनिवार को सेक्टर 12 लघु सचिवालय के पार्क में  किसान-मजदूर एकता दिवस का आयोजन किया। इसकी अध्यक्षता सीटू के जिला प्रधान निरंतर पराशर ने की जबकि संचालन लाल बाबू शर्मा ने किया। यह जानकारी सीटू के जिला उपाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह डंगवाल ने दी। उन्होंने बताया आज का दिन बहुत ऐतिहासिक है। आज के दिन ही संत रविदास का जन्म हुआ था। इस दिन को कि रविदास जयंति के रूप में बनाया जाता है। आज ही के दिन चंद्रशेखर आजाद  का शहीदी दिवस  भी है। उन्होंने देश की आजादी के लिए अपना जीवन  न्योछावर कर दिया। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव अलीराजपुर में हुआ था। उन्होंने देश की आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। इनके  पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी थी। इन्होंने देश की आजादी के लिए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया। इन्होंने 1925 के काकोरी कांड में मुख्य भूमिका निभाई थी। 27 फरवरी 1931 के दिन चंद्रशेखर आजाद अपने साथियों के साथ अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में बैठक कर रहे थे। तभी अंग्रेजों ने इन्हें घेर लिया। उन्होंने कहा था। कि दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे। आजाद ही जिए हैं। और आजाद ही मरेंगे। सीटू जिला सचिव लालबाबू शर्मा, किसान नेता नवल सिंह ने कहा कि भारत सरकार देश के किसानों के आंदोलन की अनदेखी कर रही है। तीन महीने से अधिक का समय हो गया है। लेकिन सरकार आंदोलनकारियों से बातचीत तक नहीं कर रही है। जो तीन कृषि कानून आनन-फानन में बनाए गए उन से किसानों को भारी नुकसान होगा। मंडी व्यवस्था समाप्त होने से जहां आढ़तियों को नुकसान होगा वही लाखों मजदूरों को भी काम से हाथ धोना पड़ेगा। यदि न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अमलीजामा नहीं पहनाया गया तो  देश के किसानों को अपनी उपज


के लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाएंगे। ऐसे में खेती घाटे का सौदा हो जाएगी। एक तरफ जहां किसान की उपज को सरकारी एजेंशिया नहीं खरीदेंगी वही  फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया और स्टेट वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन बंद होने के कगार पर पहुंच जाएंगे। इनके द्वारा किसानों की फसल को नहीं खरीदने से सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर आधारित जनता को भरपेट खाद्यान्न नहीं मिल पाएगा।इसलिए उक्त कानून किसानों के खिलाफ तो हैं। ही साथ ही यह मजदूर जमात के लिए भी घातक हैं हमारे देश की सत्तर प्रतिशत आबादी  खेती पर निर्भर है। चाहे वह किसान हो  या  फिर  मजदूर।इन कानूनों का सभी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। सरकारी भंडारण व्यवस्वथा  खत्म होने की वजह से सरकारी राशन की दुकानों को बंद कर दिया जाएगा। इस प्रणाली के चौपट होने से आवशयक वस्तु अधिनियम में खाद्य पदार्थों की कालाबाजरी होने शुरू हो जाएगी। इसके सबसे बड़े शिकार मजदूर ही होंगे। कानूनों का दुष्परिणाम किसान  मजदूर, के अलावा दुकानदार, दस्तकार, कर्मचारी आदि को भी भुगतने पड़ेंगे। इसकी वजह से  खाद्य सुरक्षा-सस्ता राशन, आंगनबाड़ी, मिड डे मील के लिए भी काम नहीं बचेगा। डंगवाल ने बताया कि कृषि कानूनों के लागू होने से एफसीआई, भंडारण एजेंसी, वेयरहाउस, मार्केट कमेटी-मंडी बोर्ड बंद हुए हो जाएंगे तो युवाओं को रोजगार नहीं मिलेगा। पहले ही सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण करना शुरू कर दिया है। यदि कृषि क्षेत्र पर संकट आया तो और बेरोजगारी बढ़ेगी। उन्होंने कहा  कि सरकार ने 44 श्रम कानूनों को संशोधित कर दिया है। और चार लेबर कोड बना दिए हैं। अब मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी मिल रही या नहीं इस बाबत किसी भी प्रकार की सुनवाई सरकार की एजेंसियों द्वारा नहीं की जाएगी। श्रम विभाग अब कारखानों में हस्तक्षेप करने में सक्षम नहीं रहेगा। श्रम कानूनों में संशोधन होने से मजदूरों के लिए बहुत बड़ा संकट पैदा हो जाएगा। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में सीटू से जुड़ी हुई अनेक कारखानों के वर्करों ने भाग लिया। आज की विरोध सभा को शिवप्रसाद, वीरेंद्र पाल, ओम प्रकाश, कमलेश चौधरी, अरविंद कुमार, मनोज कुमार स्टेट कोषाध्यक्ष ग्रामीण सफाई कर्मचारी यूनियन ने भी संबोधित किया।

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