फरीदाबाद 1 जनवरी केंद्र सरकार के द्वारा आनन-फानन में लागू किए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर में चल रहे आंदोलन के समर्थन में आज शुक्रवार को आलमपुर और टिकली खेड़ा गांव में किसानों की मीटिंग हुई। आलमपुर की मीटिंग की अध्यक्षता सलीम ने की जबकि टिकली खेड़ा की मीटिंग की अध्यक्षता चौधरी खुर्शीद अहमद ने की। बैठक में किसान आंदोलन की सरकार के द्वारा उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए सीटू के जिला उपाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह डंगवाल ने कहा कि किसानों का आंदोलन निर्णायक मोड पर पहुंच गया है। देसी विदेशी बड़ी-बड़ी कंपनियों के हाथों में खेती किसानी को सौंपने के लिए लाएं गए इन कानूनों की वजह से देशभर के किसानों में भारी नाराजगी व्याप्त है। कृषि कानून के लागू होने से न केवल किसान बल्कि भूमिहीन खेत मजदूर और कारीगर परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो जाएगा। क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली समाप्त हो जाएगी। इसके कारण राशन कार्ड पर मिलने वाली खाद्य सामग्री नहीं मिलेगी। इन कानूनों की वजह से राशन के डिपो बंद हो जाएंगे। क्योंकि पहले कानून में सरकार ने किसानों की फसल की सरकारी खरीद अनाज के भंडारण और सरकारी मंडी से पल्ला झाड़ लिया है। प्राइवेट मंडी होगी और अब किसान की फसल का रेट व्यापारी तय करेंगे यदि अनाज की सरकारी खरीद और भंडारण ही नहीं होगा तो इसका सीधा अर्थ है कि मजदूरों और वे जमीनी परिवारों को राशन डिपो पर मिलने वाला राशन बंद हो जाएगा। इसके च
लते देश में पहले से ही भुखमरी और कुपोषण की स्थिति और ज्यादा विकराल हो जाएगी। मिड डे मील आईसीडीएस जैसी पोषण से संबंधित केंद्रीय परियोजनाएं समाप्त हो जाएंगे।दूसरे कानून में बड़ी-बड़ी कंपनियों को कांटेक्ट खेती की इजाजत दी है। जिसके चलते कंपनियां ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए मनचाहे मूल्य पर मनमर्जी की फसल पैदा करवाएंगे। इसे अनाज का संकट बढ़ेगा।यही नहीं इससे छोटी और मध्यम किसान और वे जमीनी किसान जो आज जमीन ठेके पर लेकर खेती करते हैं। वह खत्म हो जाएंगे और किसान अपने ही जमीन पर मजदूर बनकर रह जाएगा जाएगा। इसकी वजह से खेती मजदूरों की स्थिति और ज्यादा खराब हो जाएगी। इसके चलते खेतों में कटाई नलाई, चुगाई, गुड़ाई, आदि के जो भी काम है। और खेती के सहारे पशुपालन कैसे काम सब बर्बादी की ओर बढ़ेगे। तीसरे कानून में जरूरी खाद्य वस्तुओं की जमाखोरी से रोक हटा ली गई है ।इसके चलते बड़े व्यापारी सस्ते में किसानों की फसल व उत्पाद खरीद कर बड़े बड़े गोदामों में रखेंगे। यह कालाबाजारी को छूट देने जैसा है। इसके चलते गेहूं चावल दाल आलू जांच समेत आम जरूरत की चीजों के दाम बढ़ने लेंगेगे।इस काम के लिए हरियाणा और देश के अलग-अलग हिस्सों में अदानी और अंबानी ने हजारों एकड़ जमीन खरीद कर अपने गोदाम बनाने शुरू कर दिए हैं। डगवाल ने बताया कि भारत की सरकार ने किसानों के खिलाफ कानून अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव में बनाए हैं। इसमें किसानों की सब्सिडी समाप्त करना, न्यूनतम समर्थन मूल्य को बंद करना, मंडी और आड़त की व्यवस्था को समाप्त करना, शामिल हैं। सरकार कॉरपोरेट घरानों और पूंजी पतियों को लाभ पहुंचाने के लिए किसान विरोधी बनाए हैं। इतना ही नहीं इस सरकार ने इससे पहले मजदूरों के लिए बनाए गए श्रम कानूनों में भी संशोधन कर दिया है। नए श्रम कानूनों में मालिकों को अधिक छूट दे दी गई है। भविष्य में लेबर डिपार्टमेंट मजदूर की सुनवाई नहीं करेंगे। न्यूनतम वेतन की अदायगी न करने पर भी श्रमिकों की सुनवाई नहीं होगी। उन्हें कोर्ट में जाने का भी मौका नहीं मिलेगा। न्यायालय उनकी याचिका स्वीकार नहीं करेंगे। इसी तरह से किसानों के लिए बनाए गए कानून में भी प्रावधान कर दिए गए हैं। यदि किसान की उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा। तो किसान के लिए खेती घाटे का सौदा हो जाएगी। ठेका प्रथा के लागू होने से किसान के पास कुछ भी नहीं बचेगा। क्योंकि सरकार ने कानूनों में इस बात का उल्लेख कर दिया है। इस बैठक में किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर संघर्ष कर रहे किसानों को हर तरह से सहायता पहुंचाने का आश्वासन दिया है। आज की बैठक को ग्रामीण सफाई कर्मचारी यूनियन के राज्य प्रधान देवी राम, हरियाणा गवर्नमेंट पीडब्ल्यूडी मैकेनिकल वर्कर्स यूनियन के जिला प्रधान अतर सिंह, हुडा जन स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियन के सर्कल प्रधान खुर्शीद अहमद ने भी संबोधित किया।
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