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आईपा व मंच ने नई शिक्षा नीति पर आयोजित की विचार गोष्ठी,कहा, : नई शिक्षा नीति से और महंगी होगी शिक्षा

Posted by : pramod goyal on : Friday 2 October 2020 0 comments
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 फरीदाबाद। 


ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन आईपा व हरियाणा अभिभावक एकता मंच ने गांधी जयंती पर, शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने व सरकारी शिक्षा को बढ़ावा देने में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति कितनी कारगर, विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में आईपा हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष मास्टर वजीर सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति सबको शिक्षा, समान शिक्षा, और सस्ती शिक्षा देने के उद्देश्य को पूरा नहीं करती है। इसके लागू होने से शिक्षा के व्यवसायीकरण को और बढ़ावा मिलेगा तथा शिक्षा और महंगी हो जाएगी इसके अलावा सरकारी शिक्षा में भी कोई व्यापक सुधार नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सरकारी तौर पर नई शिक्षा के सकारात्मक पहलुओं को तो बताया जा रहा है लेकिन इसके नकारात्मक व दुष्परिणाम पहलुओं को छुपाया जा रहा है। उन्हीं को बताने के लिए इस  विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया है।

विचार गोष्ठी में आईपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश शर्मा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाष लांबा, मंच के जिला अध्यक्ष एडवोकेट शिव कुमार जोशी, सचिव डॉ मनोज शर्मा ने भी अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति जल्दबाजी में लागू की जा रही है जो पूरी तरह से प्राइवेट शिक्षण संस्थान संचालकों के हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। 
वजीर सिंह ने अपने संबोधन में नई शिक्षा नीति के सकारात्मक व नकारात्मक पहलुओं की सिलसिलेवार जानकारी देते हुए बताया कि :- 
-- नई शिक्षा नीति में 3 वर्ष पूर्व प्राथमिक कक्षा शुरू करना एक स्वागत योग कदम है लेकिन 3 वर्ष की पूर्व प्राथमिक एवं पहली-दूसरी कक्षा को मिलाकर फांऊडेशन स्तर मानना व इसे बिना किसी आधारभूत ढांचे के आंगनवाड़ी को सौंपना बच्चों के साथ धोखा और छलावा है। इस फांऊडेशन स्तर को मुख्य स्कूली शिक्षा का हिस्सा ही बनाना चाहिए था। इसी प्रकार 9 से 12 चार वर्ष में 8 समैस्टर इकट्ठे करना भी आम विद्यार्थियों विशेषकर गरीब-दलित व लड़कियों के लिए हानिकारक होगा। 
-- दसवीं कक्षा सदियों से समस्त भारत में एक मान्यता प्राप्त मानक है, इसकी बोर्ड परीक्षा पहले ही भांति रहनी चाहिए थी। वर्तमान व्यवस्था में ड्रापआऊट बहुत बढ़ेगा।
-- छठी कक्षा से व्यवसायिक कोर्स देना व इंटरर्नशिप लागू करना एक तरह से बाजार के लिए सस्ती बाल मजदूरी उपलब्ध करवाना ही है। निश्चित तौर पर इसे आपराधिक हमले के रूप में लिया जाना चाहिए।
-- 11-12 वर्ष का नादान बच्चा तय नहीं कर पाता कि उसे आगे जाकर क्या बनना है। इस नीति का सीधा सा मतलब है कि वंचित तबकों के बच्चों को उच्च शिक्षा से दूर करना व पूंजीपतियों के लिए सस्ते मजदूर पैदा करना है।
-- प्राथमिक स्तर तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होगा, निश्चित तौर पर यह भी स्वागत योग्य कदम है परन्तु यहां यह स्पष्ट नहीं है कि यह नियम केवल सरकारी विद्यालयों तक लागू होगा अथवा सभी प्राइवेट व कान्वैंट स्कूलों से भी इसे लागू करवाया जाएगा। अगर वर्तमान की भांति प्राइवेट व कान्वैंट स्कूलों में अंग्रेजी मीडियम जारी रहा तो अमीर-गरीब के बच्चों में भेदभाव की खाई और बहुत बढ़ जाएगी।
-- शिक्षा में एक बार पुन: 6 प्रतिशत जी.डी.पी. का खर्च करने का वायदा किया गया है। यह वायदा आज कोई नया नहीं है, पिछले 50 वर्ष से यही वायदा चल रहा है परन्तु वास्तविकता यह है कि अब तक अधिकतम 3.5 प्रतिशत ही खर्च किया जाता रहा है। बढ़ती आबादी नई तकनीक व अन्य विकसित संसाधनों की आवश्यकता अनुसार यह खर्च बढ़ कर जी.डी.पी. का 10 प्रतिशत होना चाहिए।
-- नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालय को खुला निमंत्रण दिया गया है। इससे एक बात तो निश्चित है कि अब शिक्षा और महंगी होगी। वंचित तबकों की पहुंच से बाहर होगी व अमीर-गरीब की खाई को बढ़ाएगी।
-- यह शिक्षा नीति विद्यालयों से बाहर 2 करोड़ बच्चों को स्कूल लाने का लक्ष्य लेती है। वास्तविकता यह है कि वर्तमान में विद्यालयों से बाहर देश में 10 करोड़ बच्चे है। इनमें 2 करोड़ तो विकलांग बच्चे ही हैं। शेष 8 करोड़ बारे यह शिक्षा नीति मौन है।
-- इस नीति का एक मुख्य बिंदू दानदाताओं के दान पर आधारित शिक्षा उपलब्ध करवाना है। वर्तमान दौर में अनुभव यही कहते हैं कि यह दान, दान न होकर मुनाफे के लिए पूंजी निवेश होगा, जिससे शिक्षा का व्यापारीकरण व बाजारीकरण ही बढ़ेगा।
-- छोटी व कम छात्र संख्या वाली शिक्षक संस्थाओं को बंद करके बड़ी-बड़ी संस्थाओं मात्र को जिंदा रखने की वकालत नई शिक्षा नीति करती है। इससे भी संस्थागत भेदभाव बढ़ेगा। 
-- संस्थाओं के तीन प्रकार के वर्गीकरण किए गए हैं। निश्चित तौर पर इनमें से पहली प्रकार की संस्थाएं अति गरीब के लिए, दूसरी प्रकार की मध्यम वर्ग के लिए व तीसरी प्रकार की संस्थाएं उच्च वर्ग के लिए अपने आप आरक्षित हो जाएंगी। यह भी उल्लेखनीय है कि नई रिसर्च आदि का कार्य सिर्फ तीसरी प्रकार की संस्थाओं में ही होगा।
-- शिक्षा के व्यवसायीकरण पर पूरी तरह से रोक लगाने व प्राइवेट कॉलेज व स्कूल संचालकों द्वारा सभी नियम कानूनों का उल्लंघन करके की जा रही लूट व मनमानी पर रोक लगाने व ऐसा करने वाले प्राइवेट शिक्षण संस्थानों पर दंडात्मक कार्यवाही करने का कोई भी प्रावधान इस नई शिक्षा नीति में नहीं है। 
-- इसके अलावा सरकारी शिक्षा को बढ़ावा देने,सरकारी कालेज व स्कूलों में अध्यापकों की कमी को दूर करने, उनमें सभी जरूरी आधुनिक संसाधन मुहैया कराने, आदि के बारे में इस शिक्षा नीति  में कुछ नहीं कहा गया है। 
-- सरकारी संस्थाओं को स्वायत्तता के नाम पर फंडिंग बंद करने व प्राइवेट को बराबर फंडिंग देने की बात देश के वर्गीय चरित्र में पूंजीपति परस्त है।
-- नई शिक्षा नीति का सबसे तानाशाही रूख व इस बात में भी निहित है कि मौजूदा संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची में हैं परन्तु राज्यों की राय को कहीं कोई स्थान नहीं दिया गया है।
    विचार गोष्ठी में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार से मांग की गई कि उपरोक्त सभी विनाशकारी प्रभावों के कारण  विशेषकर वंचित तबकों-लड़कियों के हित में नई शिक्षा नीति में वांछित संशोधन करके ही इसे लागू किया जाए। विचार गोष्ठी के बाद सर्वसम्मति से शिवकुमार जोशी, डॉ मनोज शर्मा, महेश अग्रवाल को पुनः मंच का जिला अध्यक्ष, सचिव व कोषाध्यक्ष तथा पूनम भाटिया को संयोजक महिला सेल निर्वाचित किया गया इसके अलावा एडवोकेट बी एस विरदी को आइपा का जिला अध्यक्ष बनाया गया और उन्हें अधिकार दिया गया कि वे शीघ्र ही अपनी कार्यकारिणी का संगठनात्मक विस्तार करें।  विचार गोष्ठी में पंडित प्रीतम वत्स,अशोक प्रधान,मंच महिला सेल सदस्य पूनम भाटिया, अर्चना अग्रवाल, अमर जीत रंधावा, कुसुम शर्मा शैली बब्बर, हिना माथुर, संगीता नेगी, सर्व कर्मचारी संघ के श्रीपाल भाटी, बलवीर सिंह, रमेश तेवतिया, करतार सिंह सतपाल नरवत, रतन लाल राणा, छात्र नेता जगदीश सैनी, आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए।

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