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कश्मीर से शैक्षणिक प्रतिनिधिमंडल ने किया जे.सी. बोस विश्वविद्यालय का दौरा

Posted by : pramod goyal on : Wednesday, 8 January 2025 0 comments
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 फरीदाबाद, 8 जनवरी - जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद द्वारा ‘कश्मीर पर हमारा दृष्टिकोण’ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें कश्मीर से आए शैक्षणिक प्रतिनिधिमंडल ने विश्वविद्यालय के शिक्षकों के साथ कश्मीर को लेकर


विभिन्न विषयों पर चर्चा की। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण प्रकोष्ठ द्वारा पंचनद शोध संस्थान, चंडीगढ़ और मीडिया छात्र संघ हरियाणा के सहयोग से आयोजित किया गया था। 

कश्मीर से आए शैक्षणिक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मीडिया छात्र संघ, हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष श्री नरेंद्र सिंह ने किया और इसमें शिक्षाविद् डॉ. वहीद अहमद खांडे, डॉ. खालिद रसूल भट, डॉ. रेफाज अहमद, डॉ. खुर्शीद अहमद मीर, प्रो. फारूक अहमद मलिक और मीडिया छात्र संघ के समन्वयक बुरहान भट शामिल रहे। 
सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुशील कुमार तोमर ने की, जिन्होंने प्रतिनिधिमंडल का गर्मजोशी से स्वागत किया। सत्र को संबोधित करते हुए कुलपति तोमर ने जोर देकर कहा कि कश्मीर हमारे देश का अभिन्न अंग है और पहली बार विश्वविद्यालय में कश्मीर से एक शैक्षणिक प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए हर्ष हो रहा है। उन्होंने कहा कि कश्मीर की खूबसूरती सिर्फ इसके परिदृश्य में ही नहीं बल्कि इसकी संस्कृति और भाषा की विशिष्टता में भी निहित है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में कश्मीर को बहुत नुकसान हुआ है, जिसने घाटी की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है, लेकिन 2019 से हालात सुधर रहे हैं। उन्होंने समाज में सार्वभौमिक भाईचारे और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देकर कश्मीर को इस गति को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया। 
प्रो. तोमर ने कश्मीर को धरती का स्वर्ग बताते हुए कहा कि हिमालय से घिरी कश्मीर की वादियां विश्व मानचित्र पर अपनी खास पहचान रखती है। उन्होंने कश्मीर सहित देश भर के संस्थानों में अनुसंधान और विकास के महत्व पर भी बल दिया और प्रदूषण और औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण क्षरण से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की। 
चर्चा के दौरान गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज फॉर विमेन, अनंतनाग (जम्मू-कश्मीर) के प्रो. फारूक अहमद मलिक ने घाटी में स्कूली शिक्षा की जमीनी स्थिति का संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने बताया कि दक्षिणी कश्मीर में औपचारिक शिक्षा मदरसों पर निर्भर है, जिनकी संख्या अनौपचारिक रूप से 6,200 से अधिक है, जबकि सरकारी संस्थानों की संख्या कम है। इन मदरसों में पढ़ने वाले छात्र आधुनिक शिक्षा से वंचित हैं। हालांकि, मदरसों के आधुनिकीकरण कार्यक्रम की निगरानी करके शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सरकार द्वारा पहल की गई है। प्रो. मलिक ने 1950 और 1960 के दशक के दौरान कश्मीर की पारंपरिक संस्कृति, इस्लाम के कश्मीरी संस्करण और मुस्लिम समाज पर भी चर्चा की, जिसकी अपनी विशिष्ट पहचान है और जो दुनिया के अन्य हिस्सों से अलग है। 
प्रतिनिधिमंडल ने अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में आए परिवर्तनकारी दौर पर चर्चा की, जिसने जम्मू-कश्मीर में सामाजिक-आर्थिक विकास लाया है और इसे राष्ट्र की मुख्यधारा में पूरी तरह से एकीकृत किया है। उन्होंने कहा कि धार्मिक बहुलता और भाषाई विविधता के बावजूद, कश्मीर देश का अभिन्न अंग है।
प्रतिनिधिमंडल ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों को जम्मू-कश्मीर में आये बदलाव का प्रत्यक्षदर्शी बनने के लिए निमंत्रण दिया। इस अवसर पर छात्र कल्याण के डीन प्रो. मुनीश वशिष्ठ, संचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी के अध्यक्ष डॉ. पवन सिंह, संकाय सदस्य और विभिन्न विभागों के अधिकारी मौजूद थे।

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