एक समय था जब स्वयं को गरीब बताना हीन भावना को जन्म देता था लेकिन अब स्वयं को गरीब दर्शाना
फायदेमंद हो गया है....
स्वतंत्रता के बाद देश में जातिगत भेदभाव और गरीबी से उत्थान के लिए छात्रवृत्ति, अनुदान और विभिन्न
योजनाओं इत्यादि के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं लागू
कीं, ताकि पिछड़े वर्ग के लोगों को भी समान अवसर मिल सके। समय के साथ देश ने विकास किया तो
नागरिकों का भी विकास हुआ और लोग गरीबी रेखा से निकलकर आर्थिक रूप से सक्षम होने लगे। हालांकि
सरकार ने कुछ नियम और शर्तें के साथ आर्थिक सहायता को जारी रखा, ताकि जरुरतमंदों को सहयोग
मिलता रहे लेकिन जो आर्थिक रूप से सक्षम हो गए हैं उनका क्या? जो हर प्रकार से सुखमय जीवन यापन
कर रहे हैं, उन्हें अब सरकार के आर्थिक सहयोग की क्या जरुरत? क्या उनके लिए इन योजनाओं को अब
रोक नहीं दिया जाना चाहिए? ऐसा सिर्फ इसलिए ताकि गरीबी-अमीरी के अंतर को ख़त्म किया जा सके।
चूँकि गरीबी को पाटने की सरकारी योजनाओं से यह अंतर कम होना तो दूर उल्टा बढ़ता ही जा रहा है।
अमीर और अमीर हो रहे हैं और गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। इसका एक कारण यह है कि हर प्रकार से
सक्षम होने के बावजूद भी लोग गरीबी का झूठा दावा करके आर्थिक मदद और अन्य सहायता ले रहे हैं। चाहे
फिर इसके लिए झूठे कागज बनवाना पड़े या अपनी पहचान का फायदा लेना पड़े। वे हर प्रकार की तरकीब
अपनाने को तैयार हैं। लेकिन जो सच में जरूरतमंद हैं, उन्हें इन योजनाओं की या तो जानकारी नहीं है या वे
कागजी दांवपेंच और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने में ही इतने फंस जाते हैं कि योजनाओं का लाभ लेना
उन्हें सपना ही लगने लगता है।
आज स्थिति यही है, सरकार गरीबी और जातिगत भेदभाव को कम करने के लिए लगातार विभिन्न
योजनाएं लागू कर रही है लेकिन इन योजनाओं के लाभार्थियों में से सच में पात्र लोग कम ही मिलेंगे।
उदाहरण के लिए जरुरतमंदों को स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य
योजना लागू की जिसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मुफ्त में स्वास्थ सेवाएँ प्राप्त हो सकें।
अधिकारिक आंकड़ों की मानें तो योजना के अंतर्गत अब तक 30 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड बनाए जा
चुके हैं और इसमें सरकार करीब 1.25 लाख करोड़ से अधिक का सहयोग कर चुकी है लेकिन वास्तव में 30
करोड़ आयुष्मान कार्ड धारकों में सभी गरीबी रेखा के नीचे के नागरिक हैं, इस बात की पुष्टि स्वयं सरकार
भी नहीं कर सकती है। लेकिन बारीकी से पड़ताल की जाए तो बेशक इसमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग मिल
जाएँगे जिन्होंने झूठे कागजात या पहचान के दम पर यह कार्ड प्राप्त किये होंगे ,जबकि वह इसके पात्र नहीं
होंगे। यह स्थिति आपको आज चल रही आधिकतम योजनाओं में मिल जाएगी चाहे बात स्वयं को गरीब
दर्शाकर सरकारी नौकरी लेने की हो या अपने बच्चों को कम फीस में महंगे स्कूलों में दाखिला दिलाने की हो।
आज के समय में स्वयं को गरीब दर्शाना बेहद फायदेमंद हो गया है।
इस झूठे दिखावे का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि झूठी गरीबी के कारण आज भी हम अमीरी-गरीबी के
अंतर को ख़त्म नहीं पाए हैं और जब तक यह धांधली चलती रहेगी तब तक ख़त्म कर भी नहीं पाएँगे।
क्योंकि गरीबी के इस झूठे दावे से अपात्र लोग इसका लाभ लेते रहेंगे और जो सच में जरूरतमंद हैं, पात्र हैं
वह अशिक्षा, जागरूकता की कमी और अव्यवस्था के कारण वंचित ही रहेंगे। इसलिए अगर हमें सच में
गरीबी को जड़ से ख़त्म करना है तो सबसे पहले इस बात की व्यवस्था करनी होगी कि किसी भी योजना का
लाभ केवल पात्र व्यक्ति को ही मिले। जरुरतमंदों की
सहायता करने के लिए केवल योजनाएं लागू कर देना
ही काफी नहीं होगा बल्कि इन्हें उन तक सही प्रकार से पहुँचाना भी होगा। तभी हम सही मायनों में
सहयोग कर पाएँगे और समाज में व्याप्त अंतर को ख़त्म कर पाएँगे। जब यह अंतर ख़त्म होगा तभी हम सही
मायनों में विकास कर सकेंगे। -अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)
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