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लोकसभा चुनावों में पांच सीटें गंवाने के बाद हरियाणा भाजपा में प्रदेशाध्यक्ष बनाए जाने को लेकर प्रक्रिया तेज हो गई है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में हरियाणा से तीन बड़े चेहरों मनोहर लाल, राव इंद्रजीत सिंह और कृष्ण पाल गुर्जर को शामिल किए जाने से एक बात साफ हो गई है कि इन तीनों समुदायों में से किसी नेता को प्रदेशाध्यक्ष की कमान नहीं मिलनी है।
ऐसे में भाजपा के पास जाट और गैर जाट में एससी चेहरे बचे हैं, जिन पर भाजपा दांव खेल सकती है। भाजपा लगातार इस पर मंथन कर रही है कि जाट मतदाताओं को साधने की कोशिश की जाए या फिर अनुसूचित जाति के वोट बैंक को। क्योंकि पहली बार इन दोनों का वोट बैंक भाजपा से खिसक कर कांग्रेस की तरफ चला गया है। ऐसे में इनकी वापसी के लिए भाजपा के थिंक टैंक लगातार मंथन कर रहे हैं। अब जाट और एससी चेहरों के बीच प्रदेशाध्यक्ष का पद फंसा है।
मौजूदा समय में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के पास ही प्रदेशाध्यक्ष की कमान है। दोनों पद पास होने के चलते ही इस बार लोकसभा चुनावों में पार्टी के नेताओं की संगठन पर इतनी मजबूत पकड़ नहीं रह पाई, जिसका खामियाजा पार्टी ने भुगता। प्रत्याशियों ने खुलकर नेताओं पर भितरघात के आरोप लगाए हैं। आगामी चार माह में हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होने हैं, इसलिए प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी स्वतंत्र रूप से अलग नेता को दी जानी है। फिलहाल भाजपा यह तय करने में जुटी है कि वह जाट चेहरे पर दांव खेले या फिर एससी चेहरे पर। वैसे पिछले दस साल भाजपा की परंपरा रही है कि गैर जाट सीएम रहा है और जाट नेता के हाथ में संगठन की कमान रही है। इस बार भाजपा इस परंपरा को तोड़ने की तैयारी में है।
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