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फरीदाबाद,।
ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट एम्पलाइज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा ने कहा कि कर्मचारियों ने राज्य में निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव संपन्न करवाने में अहम भूमिका निभाई है। जिसकी पुष्टि बृहस्पतिवार को मुख्य निर्वाचन अधिकारी अनुराग अग्रवाल ने जारी अपने बयान में भी की है। उनका कहना है कि हरियाणा में लोकसभा चुनाव में नया रिकॉर्ड बना है। बीस साल बाद यह पहली बार हुआ है कि राज्य में कहीं कोई री-पोल नहीं हुआ है। जिसकी सराहना भारत चुनाव आयोग ने भी की है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल का कर्मचारियों एवं अधिकारियों पर विपक्ष के पक्ष में बोगस पोलिंग करवाने का आरोप लगाना और चार जून के बाद ऐसे कर्मचारियों एवं अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी देना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण एवं निंदनीय है। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री का उक्त बयान राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारी के दावे को भी नकार रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को कर्मचारियों को धमकाने की बजाय उनकी लंबित मांगों का समाधान कर उनमें सरकार के खिलाफ बढ़ रही नाराजगी को दूर करने के लिए शीघ्र अतिशीघ्र ठोस कदम उठाने चाहिए। लेकिन सरकार ऐसा करने की बजाय उसको धमकी देकर आक्रोश को बढ़ाने का ही काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने पिछले पांच साल में पुरानी पेंशन बहाली, हरियाणा कौशल रोजगार निगम को भग कर ठेका कर्मियों को नियमित करने, समान काम समान वेतन, आठवें पे कमीशन का गठन, केन्द्र के समान एचआरए के स्लैब में बदलाव करने, निजीकरण पर रोक लगाने, खाली पड़े लाखों पदों को पक्की भर्ती से भरने, पेंशनर्स की 65,70 व 75 साल की उम्र में बेसिक पेंशन में 5 प्रतिशत बढ़ोतरी करने आदि मांगों का समाधान करना तो दूर प्रमुख कर्मचारी संगठनों से बातचीत तक करना आवश्यक नहीं समझा। जबकि राज्य कर्मियों का प्रमुख संगठन सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा निरंतरता में लोकतांत्रिक तरीके से रैलियां , धरने, प्रदर्शन , हड़ताल व भूख हड़ताल आदि आंदोलन कर सरकार के सामने कर्मचारियों की मांगों को उठाता रहा है। यहां तक कि लोकसभा चुनाव के दौरान भी एसकेएस ने मांगों के ज्ञापन भाजपा प्रत्याशियों को दिए गए। लेकिन किसी भी प्रत्याशी ने कर्मचारियों की मांगों पर एक शब्द तक बोलना उचित नहीं समझा। उन्होंने जोर देकर कहा कि नाराजगी के बावजूद चुनाव ड्यूटी में तैनात कर्मचारियों ने पूरी ईमानदारी एवं निष्पक्षता के साथ अपने कृतत्व का निर्वहन किया है। कर्मचारियों पर पक्षपात का आरोपी बिल्कुल ग़लत एवं निंदनीय है।
उन्होंने कहा कि सरकारी कर्मचारी भी देश के नागरिक एवं मतदाता हैं। वह किसी राजनीतिक दल के गुलाम नहीं है। कर्मचारियों को भी अपने विवेक से सरकार चुनने का संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकतर है। जिसको कोई छीन नहीं सकता है।
श्री लांबा ने बताया कि कर्मचारियों के आंदोलन के दबाव में हरियाणा सरकार ने पुरानी पेंशन बहाली की मांग को एग्जामिन करने के नाम पर एक कमेटी का गठन किया था। जिसको बाद में यह कहकर ठंडे बस्ते में डाल दिया की केन्द्र सरकार द्वारा इस मामले में गठित कमेटी के आउटकम के बाद ही सरकार कोई फैसला करेगी। जबकि केन्द्र सरकार तो पुरानी पेंशन बहाली की मांग को मानने के लिए स्पष्ट मना कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने अभी तक पचास प्रतिशत डीए होने के बाद एचआरए के स्लैब में 10-20-30 करने का भी पत्र तक जारी नहीं किया। जबकि केन्द्रीय कर्मचारी उक्त लाभ ले चुके हैं।
जिसके कारण कर्मचारियों एवं अधिकारियों को एक से तीन हजार रुपए तक प्रति महीने नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि जनवरी,2026 से आठवां पे कमीशन लागू किया जाना चाहिए। लेकिन केन्द्र सरकार ने इसके गठन से ही साफ इंकार कर दिया है। इतना ही नहीं केन्द्र एवं राज्य सरकार एवं पीएसयू के खाली पड़े करीब एक करोड़ रिक्त पदों को पक्की भर्ती से नहीं भरा जा रहा है। जिससे कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ रहा है। हरियाणा में भी कई लाख पद रिक्त पड़े हैं। लेकिन उसको पक्की भर्ती से नहीं भरा जा रहा है। सालों से आउटसोर्स एवं ठेका पर काम कर रहे कर्मचारियों को न तो नियमित करने की पालिसी बनाई जा रही है और न ही उन्हें समान काम समान वेतन व सेवा सुरक्षा प्रदान की जा रही है। इसके विपरित हरियाणा कौशल रोजगार निगम का गठन कर इनके रेगुलर होने के रास्ते को ही बंद करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने बताया कि निजीकरण की मुहिम को तेज कर दिया गया है। बिजली, स्वास्थ्य,जन स्वास्थ्य, शिक्षा ,ट्रांसपोर्ट आदि जन सेवाओं को भी निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। सरकारी स्कूलों को बंद किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वायदे के बावजूद सरकार पिछले पांच सालों में कैशलैस मेडिकल सुविधा अभी तक लागू करने में विफल रही है। इतना ही नहीं पेंशनर्स की अत्यंत जायज़ मांग 65,70 व 75 साल की उम्र में बेसिक पेंशन में 5 प्रतिशत बढ़ोतरी करने की मांग की भी अनदेखी की गई है। उन्होंने कहा कि रिकार्ड तोड जीएसटी के कलेक्शन के बावजूद कर्मचारियों एवं पेंशनर्स के कोविड 19 में फ्रीज किए गए 18 महीने के बकाया डीए को रिलीज नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को कर्मचारियों को धमकाने की बजाय कर्मचारी संगठनों से बातचीत कर लंबित मांगों एवं समस्याओं का समाधान करना चाहिए और जन सेवाओं के निजीकरण पर रोक व खाली पड़े लाखों पदों को शीघ्र अतिशीघ्र पक्की भर्ती से भरने के ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
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