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महारानी वैष्णोदेवी मंदिर में दूसरे दिन मां ब्रहचारिणी की भव्य पूजा अर्चना की गई

Posted by : pramod goyal on : Wednesday 10 April 2024 0 comments
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 फरीदाबाद। महारानी वैष्णोदेवी मंदिर में दूसरे दिन मां ब्रहचारिणी की भव्य पूजा अर्चना की गई। प्रातकालीन आरती व हवन यज्ञ में माता के समक्ष पूजा अर्चना कर भक्तों ने अपनी हाजिरी लगाई। इस अवसर पर मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने हवन यज्ञ का शुभारंभ करवाया और भक्तों को नवरात्रों की शुभकामनाएं दी। 

इस अवसर पर शहर के जाने माने उ

द्योगपति और लखानी अरमान कंपनी के चेयरमैन केसी लखानी ने माता के दरबार में हाजिरी लगाई और हवन में आहुति दी। उन्होंने मां की विशेष पूजा अर्चना में भी हिस्सा लिया तथा अपने अरदास लगाई।
 मंदिर में विशेष अतिथि के तौर पर पहुंचे फकीरचंद कथूरिया, गुलशन भाटिया, सुरेंद्र गेरा और धीरज ने मां की पूजा अर्चना की। मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने आए हुए अतिथियों को माता की चुनरी भेंट कर प्रसाद दिया। इस अवसर पर मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने बताया कि नवरात्रों के पावन अवसर पर मंदिर में चौबीस घंटे श्रद्धालु पूजा अर्चना में शामिल हो सकते हैं। इसके लिए चौबीस घंटे मंदिर के कपाट खुले रहेंगे। इसके साथ साथ नवरात्रों के सभी नौ दिनों में संध्याकाल आरती में माता की चौकी भी आयोजित की जाएगी।
इस अवसर पर श्री भाटिया ने श्रद्धालुओं को मां ब्रहमचारिणी की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। 

ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। 
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।  श्री भाटिया ने कहा कि मां ब्रह्मचारिणी की सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं.

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