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भारतीय ज्ञान परम्परा से मिलेगा सीखने का एक समग्र दृष्टिकोणः प्रो. कुठियाला

Posted by : pramod goyal on : Tuesday 23 April 2024 0 comments
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 फरीदाबाद, 23 अप्रैल - जे. सी. बोस विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद के भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ द्वारा छात्र कल्याण कार्यालय तथा संचार और मीडिया प्रौद्योगिकी विभाग एवं विज्ञान भारती हरियाणा के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय ज्ञान परम्परा - एक भावी रूपरेखा’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। 

कार्यशाला के मुख्य वक्ता हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर बृज किशोर कुठियाला रहे। श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के कुलपति श्री राज नेहरू तथा चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से प्रोफेसर संजीव शर्मा सम्मानित वक्ता रहे तथा भारतीय ज्ञान परम्परा की भावी रूपरेखा को लेकर अपने विचार साझा किये। सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुशील कुमार तोमर ने की। 
कार्यशाला का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. सुशील कुमार तोमर ने कहा कि भारतीय ज्ञान का उद्गम हमारे वेद है जिनमें सभी तरह के ज्ञान का समावेश है। लेकिन हमारे वेदों में निहित ज्ञान, संस्कृति और मानवीय मूल्यों का हमारी आधुनिक शिक्षा में समावेश नहीं हो पाया है, जिस कारण नई शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा के साथ जोड़ने की आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा समावेशिता और पहुंच को प्राथमिकता देती है तथा यह सुनिश्चित करती है कि शिक्षा सामाजिक-आ

र्थिक बाधाओं से परे हो। प्रत्येक छात्र को, उनकी पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच प्राप्त हो। भारतीय ज्ञान परम्परा अधिक न्यायसंगत और समावेशी समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो विभिन्न पृष्ठभूमि के छात्रों को अपने शैक्षिक प्रयासों में आगे बढ़ने और उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए सशक्त बनाती है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री राज नेहरू ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा धर्म तथा कर्म की परम्पराओं में निहित रही है।  हमारे पूर्वजों ने शिक्षा एवं शिक्षा व्यवस्था को प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा। पाश्चात्य विचारधारा ने शिक्षा को मुख्य रूप से बाह्य सुख से जोड़ा जबकि भारतीय शिक्षा परम्परा ने आंतरिक सुख को प्राथमिकता दी। भारतीय शिक्षण परम्पराओं में चतुरंग (शतरंज) और मोक्षपातम (सांप-सीढ़ी) के खेल का उदाहरण देते हुए कहा कि ये खेल संस्कार तथा विचार क्षमता को विकसित करने के रूप में भारतीय शिक्षा परम्पराओं का हिस्सा रहे। उन्होंने कहा कि अनेकों आघात के बावजूद यदि कोई ज्ञान परम्परा स्थाई रूप से विद्यमान रही, तो यह भारतीय ज्ञान परम्परा ही है। उन्होंने भारतीय प्राचीन ग्रंथों में समय विस्तार की अवधारणा उल्लेख करते हुए कहा कि आज समय है कि भारतीय ज्ञान परम्परा के अंतर्गत आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को प्राचीन ज्ञान से जोड़कर शोध किया जाये। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में जीवन दर्शन, ज्ञान और विज्ञान समाहित है जो विश्व कल्याण के लिए जरूरी है। 
अपने संबोधन में प्रो संजीव शर्मा ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा मुख्य रूप से प्रश्न, जिज्ञासा और उत्सुकता के माध्यम से जीवन का सही मार्ग प्रदान करने वाली है। भारतीय वेदों में प्रश्नोपनिषद् का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे सभी वेद का सारांश प्रकृति से प्रश्न है जो श्रेष्ठता हासिल करने उद्देश्य पर काम करते है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में सभी विषयों को समाहित करने की विशेषता हैं। यह समावेशी तथा विश्व कल्याणकारी शिक्षा प्रणाली है। उन्होंने कहा कहा कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने विज्ञान के प्रति अलग दृष्टिकोण बना दिया है, जो भारतीय ज्ञान परम्परा में एक अलग दृष्टिकोण है। 
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रो बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा सीखने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है, जो समकालीन ज्ञान और वैश्विक दृष्टिकोण को शामिल करते हुए देश के प्राचीन ज्ञान से प्रेरणा लेती है। भारतीय ज्ञान परंपरा की अवधारणा ने हमारे प्राचीन रीति-रिवाजों और ज्ञान को पुनर्जीवित करने पर बल देती है। उन्होंने जर्मनी एवं तिब्बत में संग्रहित ग्रंथों का उल्लेख करते हुए कहा कि आज अमेरिका के विश्वविद्यालय भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा का समझने पर काम कर रही है, जिसके लिए हमें भी उत्साहित होकर काम करने की आवश्यकता है। हमें अपनी विरासत में मिले ज्ञान के भंडार को स्वीकार करने और एकीकृत करने की आवश्यकता है। हमारा भविष्य का निर्माण हमारे अतीत की क्षमताओं पर आधारित है।

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