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वैष्णो देवी मंदिर में शुरू हुई नवरात्रों की धूम, पहले दिन की गई मां शैलपुत्री की भव्य पूजा

Posted by : pramod goyal on : Tuesday 9 April 2024 0 comments
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 फरीदाबाद : नवरात्रों के पहले दिन माता वैष्णो देवी मंदिर तिकोना पार्क फरीदाबाद में मां शैलपुत्री की भव्य पूजा अर्चना की गई. इस शुभ अवसर पर प्रात काल से ही मंदिर में भक्तों का ताता लगा शुरू हो गया. मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने प्रातः कालीन आरती का शुभारंभ करवाया और मंदिर में आने वाले सभी भक्तों को नवरात्रों की


शुभकामनाएं दी. इस शुभ अवसर पर माता के समक्ष ज्योति प्रज्वलित की गई. शहर के प्रमुख उद्योगपति आरके जैन, आरके बत्रा , मनमोहन गुप्ता, प्रदीप झाम , नीरज अरोरा, आनंद मल्होत्रा तथा रमेश सहगल ने माता के चरणों में अपनी हाजिरी लगाई. मंदिर प्रधान जगदीश भाटिया ने आए हुए सभी अतिथियों को माता की चुनरी तथा प्रसाद भेंट किया. श्री भाटिया ने बताया  कि नवरात्रों के उपलक्ष में 24 घंटे मंदिर के कपाट खोले जाते हैं. ताकि भक्तगण रात के समय भी मंदिर में अपनी हाजिरी लगा सके. उन्होंने बताया कि मंदिर में प्रतिदिन भंडारे का आयोजन भी किया जाता है.

 इस अवसर पर श्री भाटिया ने भक्तों को मां शैलपुत्री की कथा सुनाइ. उन्होंने बताया कि  मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है। 
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। 
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था । दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को दुख पहुंचा। 
वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। 
पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

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