HEADLINES


More

लापता बच्चों को अपनों से मिलाने में मदद करेगी जे.सी. बोस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की खोज

Posted by : pramod goyal on : Friday 9 February 2024 0 comments
pramod goyal
Saved under : , ,
//# Adsense Code Here #//

 फरीदाबाद, 9 फरवरी - जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद के शोधकर्ताओं ने सामाजिक सरोकार के लिए अपनी प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता साझा करने की दिशा में कदम उठाया है। विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मशीन लर्निंग टेक्नोलॉजी का उपयोग कर लापता बच्चों का पता लगाने की स्पीच क्लै


रिफिकेशन तकनीक विकसित की है। इस पहल को मान्यता देते हुए भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा शोधकर्ताओं को उनके शोध ‘रक्षक - मशीन लर्निंग आधारित स्पीच क्लैरिफिकेशन का उपयोग करके लापता बच्चों को पहचानने के लिए बाल पहचान सॉफ्टवेयर’ शीर्षक से पेटेंट प्रदान किया है।

यह पेटेंट अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई)  की अनुसंधान संवर्धन योजना (आरपीएस) के तहत वित्त पोषित अनुसंधान परियोजना का एक हिस्सा है। परियोजना पर विश्वविद्यालय में कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आशुतोष दीक्षित द्वारा प्रधान अन्वेषक के रूप तथा डॉ. प्रीति सेठी और डॉ. पुनीत गर्ग द्वारा सह-प्रधान अन्वेषक के रूप में कार्य किया। 
कुलपति प्रो. सुशील कुमार तोमर ने समाज से जुड़े गंभीर विषय पर शोधकर्ताओं द्वारा की गई पहल की सराहना की और कहा कि बच्चों का लापता होना समाज में बड़ी समस्याओं में से एक है और महानगरीय शहरों में यह अधिक है जहां माता-पिता दोनों कामकाजी हैं। उन्होंने कहा कि इस पहल ने न केवल विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं शोधार्थियों को मशीन लर्निंग जैसी उभरती तकनीक पर काम करने का अवसर दिया है, बल्कि समाज को ऐसा समाधान भी प्रदान किया है जो राज्य सरकार के एक उभरते अनुसंधान विश्वविद्यालय के लिए आवश्यक और अपेक्षित हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह शोध निश्चित रूप से पुलिस अधिकारियों की कार्य क्षमता को बढ़ाने, लापता बच्चों के मामले में उनके काम में तेजी लाने और ऐसे बच्चों को अपने परिवारों से मिलाने में मदद करेगा।
प्रोफेसर आशुतोष दीक्षित ने देश में लापता बच्चों, विशेषकर 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए ऐसे मामलों के तकनीकी समाधान की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जब कभी ऐसे लापता बच्चे पुलिस को मिलते है तो वे एक घबराहट और डर की स्थिति में होते हैं और स्पष्ट रूप से कुछ बता पाने में सक्षम नहीं होते क्योंकि वे डर कारण हकलाने लगते हैं। उनकी टीम द्वारा विकसित स्पीच क्लैरिफिकेशन तकनीक का उद्देश्य ऐसे डरे हुए बच्चों को खुद का सही विवरण देने में सक्षम बनाना और पुलिस अधिकारियों को उनके अभिभावकों का पता लगाने में सहायता प्रदान करना है। इस प्रकार, यह पेटेंट तकनीक लापता बच्चों से जुड़े मामलों में सामाजिक भलाई के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने और अनसुलझे मामलों की संख्या को कम करने में एक महत्वपूर्ण कदम है।

No comments :

Leave a Reply