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मंच की मांग, डीसी, डीईओ से लिया जाए एफिडेविट कि उसके जिले के स्कूलों में एनसीईआरटी की जगह नहीं लगाई जा रही हैं निजी प्रकाशकों की किताबें

Posted by : pramod goyal on : Friday 8 April 2022 0 comments
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 हरियाणा अभिभावक एकता मंच ने कहा है कि प्राइवेट स्कूल संचालक अपने अभिभावकों से एनसीईआरटी की किताब की जगह निजी प्रकाशकों की मोटी व महंगी किताबें और स्कूल का नाम लिखी कापियां व वर्दी खरीदवा रहे हैं। इसका सबूत छात्रों के भारी-भरकम बस्तों के अंदर मौजूद है। उपायुक्त व जिला शिक्षा अधिकारी दोषी स्कूलों के खिलाफ कोई भी उचित कार्रवाई न करके अभिभावकों से कह रहे हैं  कि वे स्कूलों की इस प्रकार की मनमानी के सबूत लाएं तभी वह कार्रवाई करेंगे। मंच ने मुख्यमंत्री शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर मांग की है कि उपायुक्त, जिला शिक्षा


अधिकारी से एफिडेविट लिया जाए कि उसके जिले में एनसीईआरटी किताबों की जगह निजी प्रकाशकों की किताबें नहीं लगाई जा रही  हैं। जिससे सच्चाई सामने आए।

मंच का आरोप है कि जिला प्रशासन के अधिकारी स्कूल संचालकों को फायदा पहुंचाने की नीयत से ही दोषी स्कूलों के खिलाफ कोई भी उचित कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। जब स्कूल प्रबंधक अभिभावकों से महंगी फीस वसूल लेंगे और किताब  कॉपियां, वर्दी आदि भी खरीदवा लेंगे, अभिभावक पूरी तरह से लूट पिट जाएंगे तब खाना पूर्ति के लिए कार्रवाई की जाएगी।
मंच का कहना है कि निदेशक पंचकूला ने मार्च 2021 व अभी मार्च महीने के शुरू में ही सभी जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र भेजकर निर्देश दिया था कि प्राइवेट स्कूलों में नियमानुसार एनसीईआरटी की किताबें ही लगवाई जायें। जो स्कूल संचालक इसके विपरीत प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए अभिभावकों को मजबूर कर रहे हैं और अपने स्कूल के अंदर व अपनी बताई गई दुकान से ही किताब, कॉपी, स्टेशनरी, यूनिफार्म आदि खरीदने के लिए अभिभावकों को विवश कर रहे हैं उनके खिलाफ उचित कार्रवाई करते हुए उनके नाम शिक्षा निदेशालय को भेजे जाएं। जिला प्रशासन शिक्षा निदेशक के इन आदेश व दिशा निर्देशों का भी पालन नहीं कर रहा है। मंच ने मुख्यमंत्री शिक्षा मंत्री अतिरिक्त मुख्य सचिव शिक्षा को पत्र भेजकर  अधिकारियों की कार्यशैली की शिकायत की है।
मंच के प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा व प्रदेश संरक्षक सुभाष लांबा ने कहा है कि मंच की ओर से कई बार जिला व मौलिक शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखकर प्राइवेट स्कूलों द्वारा की जा रही इस मनमानी पर रोक लगाने की मांग की गई है। लेकिन आज तक मंच के पत्रों पर कोई भी उचित कार्रवाई नहीं की गई है। शिक्षा अधिकारियों का कहना है कि अभिभावकों द्वारा लिखित शिकायत करने पर ही कार्रवाई की जाएगी। जबकि यह जगजाहिर है कि अभिभावक स्कूल वालों द्वारा उनके मन में डाले गए डर की वजह से लिखित शिकायत करने से डरते हैं। देखा गया है कि जब भी किसी अभिभावक ने स्कूलों की मनमानी की शिकायत की स्कूल प्रबंधकों ने उनके बच्चे को परेशान व  हरासमेंट किया है।
एपीजे के अभिभावक रमन सूद, अवनीश जैन, डीएवी 14 व रयान के अभिभावक एडवोकेट आई डी शर्मा, डीपीएस 19 की  अभिभावक शीतल लूथरा ने बताया है कि जो कॉपी बाजार में 20 रुपये की मिल रही है स्कूल वाले उसके कवर पेज पर अपने स्कूल का नाम लिखकर उसे 60 रुपये में बेच रहे हैं. नए छात्र पुराने छात्रों से किताब लेकर पढ़ाई ना कर सकें इसके लिए पुरानी किताबों के एक दो पाठ्यक्रम को बदल दिया गया है या आगे पीछे कर दिया है। देश विदेश का भूगोल नहीं बदला है लेकिन स्कूल वालों ने भूगोल की किताब ही बदल दी है या एक दो लेसन चेंज कर दिया है। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल संचालक लूटने का हर प्रकार का हथकंडा अपना रहे हैं।
अभिभावकों का कहना है कि स्कूल से या स्कूल द्वारा बताई गई दुकान से प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों के साथ कॉपी व अन्य स्टेशनरी का सेट नर्सरी से पहली कक्षा तक के बच्चों को 2 से 3 हजार रुपए, कक्षा दो से पांचवीं तक चार से 5000 रुपये, कक्षा नौवीं से 12वीं तक सात से 10 हजार रुपये का सेट दिया जा रहा है जबकि बाजार में एनसीईआरटी किताबों के साथ यही सेट 600 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक है। स्कूल वाले अभिभावकों से यह तो कह रहे हैं कि अभिभावक कहीं से भी किताब कॉपी खरीदने को स्वतंत्र हैं लेकिन जब बताई गई किताब,कापियां,वर्दी आदि स्कूल व स्कूल द्वारा बताई गई दुकान के अलावा कहीं मिलती ही नहीं हैं तो अभिभावकों को मजबूरी बस उनकी बताई गई दुकान से ही किताब कॉपी खरीदनी पढ़ती है।
यह खुल्लम-खुल्ला लूट व मनमानी है।
ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन आईपा के जिला अध्यक्ष एडवोकेट बीएस विरदी ने कहा है कि एक तो स्कूल प्रबंधकों ने बिना फार्म 6 जमा कराए एक अप्रैल से शुरू हुए नए शिक्षा सत्र में स्कूल फीस में काफी बढ़ोतरी कर दी है. इससे अभिभावक खासे परेशान हैं अब स्कूल संचालकों द्वारा एनसीईआरटी की किताबों की जगह प्राइवेट पब्लिशर्स की महंगी किताबों को खरीदवाने से उनकी परेशानी को और बढ़ा दिया है. मंच का कहना है कि जब पेपर एनसीईआरटी की किताबों के सिलेबस के आधार पर आता है तो फिर स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें क्यों लगाई जा रही हैं. वैसे भी प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों की कीमत एनसीईआरटी की किताबों से काफी ज्यादा है। जिन किताबों की कोई जरूरत नहीं है उन्हें भी खरीदने के लिए कहा जा रहा है. फालतू किताबें लगा कर बच्चों के मासूम कंधों पर बस्ते का बोझ बढ़ाया जा रहा है. जबकि केंद्र व राज्य सरकार ने सभी क्लासों के बच्चों के बस्ते का बजन निश्चित किया हुआ है। इसकी भी जांच नहीं हो रही है।

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