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अब्राहम लिंकन पर आधारित टॉक शो आयोजित

Posted by : pramod goyal on : Friday 11 February 2022 0 comments
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 शिक्षा विभाग के आदेशानुसार राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय एन आई टी तीन फरीदाबाद की जूनियर रेडक्रॉस, गाइड्स और सैंट जॉन एंबुलेंस ब्रिगेड ने प्राचार्य रविंद्र कुमार मनचंदा की अध्यक्षता में सच्चाई, सादगी, संघर्ष, की प्रतिमूर्ति अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति के जन्मदिवस पर टाकशो का आयोजन किया। इस वार्ता में विद्यालय की छात्राओं जिया, आरती, अध्यापिका अंशुल, प्राध्यापिका हेमा और प्राचार्य रविंद्र कुमार मनचंदा ने छात्राओं का अब्राहम लिंकन के महान व्यक्तित्व से परिचय करवाया। प्राध्यापिका हेमा, अध्यापिका अंशुल और छात्रा जिया और आरती ने कहा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का संपूर्ण जीवन हम सभी को प्रेरणा देने वाला है। निर्धन परिवार में जन्मे लिंकन के जीवन का प्रत्ये


क पृष्ठ संघर्ष से सफलता की कहानी वर्णन करता है। आज से 161 वर्ष पहले अब्राहम लिंकन अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति बने थे। नितांत कठिनाइयों को सहन करने के पश्चात भी लिंकन ने कभी हार नहीं मानी। निर्धनता से लेकर व्हाइट हाउस तक की दूरी कठिन परिश्रम और समर्पण से समाप्त की। जूनियर रेडक्रॉस और सैंट जॉन एंबुलेंस ब्रिगेड प्रभारी प्राचार्य रविंद्र कुमार मनचंदा ने बताया कि 12 फरवरी 1809 को अमेरिका के एक अति निर्धन परिवार में जन्मे लिंकन का बचपन विषम परिस्थितियों में बीता। लिंकन का परिवार इतना निर्धन था कि सभी लोग एक लकड़ी के छोटे से घर में रहते थे। जिस स्थान पर घर था उसे लेकर भी विवाद हुआ और पूरे परिवार को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। लिंकन के पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि उन्हें स्कूल भेज सकें, पेट पालने के लिए लिंकन को बचपन से ही मजदूरी करनी पड़ी। दूसरों के खेतों में काम करते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और बैरिस्टर बने। आवश्यकता में सभी की सहायता करना तथा यहां तक की निरीह जीवों को भी विपत्ति में देख कर उन की सहायता केलिए हमेशा उद्धृत रहते थे। बहुत संघर्षों के बाद अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। संघर्ष के दौरान उन्होंने लोगों के बदलते रूप देखे। राजनीति में जो कुछ होता है उनके साथ भी हुआ। प्राचार्य मनचंदा ने कहा कि उनके ऊपर भी कीचड़ उछाला गया। उन्हें तरह-तरह से परेशान किया गया, परंतु उनकी दृढ़ता के आगे विरोधियों ने हमेशा मुंह की खाई। अंततः अमेरिकी जनता ने उनके व्यक्तित्व को पहचान ही लिया। वे प्रथम रिपब्लिकन थे। अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति बनने के पश्चात भी वे अपने निजी कार्य स्वयं करते थे और सभी के प्रेरणा स्त्रोत थे। अमेरिका में दास प्रथा के अंत का श्रेय लिंकन को ही जाता है। उनकी मृत्यु 15 अप्रैल 1865 में हुई थी। प्राचार्य मनचंदा ने सुंदर आयोजन के लिए सभी छात्राओं और अध्यापकों का इस टॉक शो में भागीदारी के लिए स्वागत करते हुए अभिनंदन किया और लिंकन के जीवन से सीख लेने की और परिश्रम करने के लिए प्रेरित किया।

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