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सुप्रीम कोर्ट अरावली क्षेत्र में बसी खोरी बस्ती के मकानों को तोड़ने के आदेश पर मानवीय आधार पर पुनः विचार करें - ओमप्रकाश धामा

Posted by : pramod goyal on : Wednesday 16 June 2021 0 comments
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 फरीदाबाद अरावली क्षेत्र में बसी खोरी बस्ती को माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तोड़ने के लिए जिला प्रशासन ने अपना पूरा प्लान बना लिया है। ड्यूटी मजिस्ट्रेट नियुक्त कर दिए गए हैं। पुलिस फोर्स का पूरा प्रबंध कर लिया गया है। बस्ती में पुलिस का फ्लैग मार्च किया जा चुका है। रोजाना मुनादी कराई जा रही है कि लोग स्वयं अपने मकान खाली करके चले जाएं अन्यथा किसी भी नुकसान की भरपाई के लिए जिला प्रशासन जिम्मेदार नहीं होगा। बस्ती की लाइट ओर पानी के कनेक्शन काट दिए गये हैं।  कुछ लोग अभी भी बस्ती में डटे हुए हैं और कुछ लोग सालों से बने अपने घरों को ताला लगाकर और अपना सामान लेकर स्वंय छोड़ कर जा  रहे हैं। आज क्रोना का काल है। ऐसे समय में इन लोगों को किराए पर भी मकान कौन देगा, यह बड़ा सवाल है। लोगों को उजाड़ने की तो पूरी तैयारी कर ली गई है लेकिन कोई भी राजनीति दल ,राजनीतिक व्यक्ति, शासन प्रशासन का जिम्मेवार अधिकारी इनके पुनर्वास पर बात क्यों नहीं करता। क्या यह त्रासदी करोना  से कम है !  इनके छोटे-छोटे बच्चों का क्या हाल होगा , क्या कभी किसी ने इस पर विचार करने का प्रयास किया है ! क्या इनको उजाड़ने से पहले इनके करोना के टेस्ट किए गए हैं, शर्तिया नहीं किए गए हैं । फिर यह जहां भी जाएंगे और इनमें कोई भी व्यक्ति करुणा महामारी से प्रभावित होगा तो आगे चलकर उसका क्या हाल होगा , क्या कभी किसी ने इस पर विचार करने की कोशिश की, नहीं की । एक ही बात की रट लगा रखी है के सर्वोच्च न्यायालय के  आदेशों की पालना करनी है। क्या माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस में आदेश पारित करते समय संविधान के  आर्टिकल 21 में दिए गए जीने के अधिकार पर विचार करने की आवश्यकता नहीं समझी।  अरावली क्षेत्र को बचाना ही है तो इनके उजाड़ने  के साथ साथ इनके पुनर्वास पर भी माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कम से कम मानवीय पहलू पर तो विचार करना ही चाहिए था ।


 हम सुप्रीम कोर्ट से ऐसी अपेक्षा भी रखते हैं । क्या सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर के  अपने आदेश की पालना के समय को 6 हफ्ते से आगे नहीं बढ़ा सकता और इस दौरान इन लोगों के पुनर्वास पर भी कोई आदेश पारित किए जा सकते हैं लेकिन ऐसा लगता है  इस देश में ऐसा नहीं होगा क्योंकि यहां न्याय बिकता है मिलता नहीं। यदि मेरी बात गलत है तो क्या अरावली क्षेत्र में  बसे   हजारों फार्म हाउसेस को इस बस्ति को उजाड़ने से पहले तोड़ने के आदेश  नहीं दिए  जाने चाहिए थे। सवाल यह है एक तरफ गरीब आदमी को रहने का ठिकाना नहीं है और दूसरी तरफ  हजारों  शानदार आलीशान फार्म हाउस बने हुए हैं , बड़े-बड़े बिल्डर्स ने कई कई मंजिला फ्लैट बना रखे हैं,  खोरी बस्ती  के साथ आलीशान फाइव स्टार होटल बने हुए हैं, क्या इनसे पर्यावरण को नुकसान नहीं हो रहा और यदि हो रहा है तो इन को तोड़ने के आदेश माननीय सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं पास किए या इस केस की सही पैरवी नही की गई या कोई ऐसी ताकत इसके पिछे है जो इन गरीबों को उजाड़ कर फिर कोई आलीशान फार्म हाउसस बनाना चाहते हैं। ऐसे अनेकों सवाल है जिनका जबाब बस्ती को तोड़ने से पहले मिलने


ही चाहिये।
 
यह सही है के अरावली क्षेत्र में पर्यावरण को बचाने के लिए ऐसी बस्तियों  को नहीं बसाया  जाना चाहिए। यह भी सही है यह बस्ती अनाधिकृत रूप से सरकारी जमीन पर बसी हुई है  और इन लोगों को यहां पर नहीं बसना  चाहिए था। मैंने  अपनी पहली पोस्ट में यह सब लिखा था कि जहां इन लोगों का  कसूर  है वही सरकारी जमीन को गैर कानूनी तौर पर बेचने के लिए कुछ भू माफियाओ  का  राजनीतिक और शासन प्रशासन के संरक्षण में बेचना भी तो कसूर है । फिर झुग्गियां तोड़ने से पहले इन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही जिन लोगों ने गैर कानूनी तौर पर  गरीब लोगों से पैसे लेकर यहां बसाने का काम किया । यही नहीं अनाधिकृत रूप से बिजली पानी की भी  सप्लाई की गई। खोरी बस्ती में गैर कानूनी तौर पर झुगियाँ बसाने का काम कोई दो चार वर्ष पहले शुरू नहीं हुआ। यह कार्य पिछले लगभग 40 - 50 वर्ष से लगातार राजनीति और प्रशासन के संरक्षण में  चल रहा है।  पहले  झुगियाँ  डाली गई , फिर कच्चे मकान बने और फिर कुछ लोगोँ ने पक्के मकान बना लिए जो इन भूमाफ़ियों के सरंक्षण में हुआ और इन गरीबों को सबने जी भरकर लूटा ।क्या इस बात की जांच नहीं होनी चाहिए कि  पिछले 50 वर्षों में ये कौन लोग हैं जिन्होंने गरीबों की मजबूरी का फायदा उठा कर के इनको घर से बेघर करने में भी जरा भी शर्म नहीं आई। 

इस बस्ती  में जहां गरीब लोगों के पास एक या दो कमरों के मकान हैं वहीं ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने हजारों गज जमीन पर कब्जा कर रखा है।  उसमें स्कूल चल रहे हैं। फैक्ट्रीज चल रही है । धार्मिक स्थल बने हुए हैं।  मेरा यह मानना है कि  सबसे पहले ऐसे लोगों को  सर्च करके वहां से बेदखल करना चाहिए था जिन्होंने हजारों गज जमीन पर कब्जा कर रखा है और उसके बाद इन लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करके इनको  यहां से विस्थापित किया जाता । इसलिए मेरा शासन प्रशासन से अनुरोध है किस मानवीय पहलू को देखते हुए खोरी बस्ती में मकान तोड़ने की कार्रवाई को कुछ समय के लिए रोक देना चाहिए और इसके लिए आवश्यकता हो तो दोबारा सुप्रीम कोर्ट में भी अर्जी दाखिल की जा सकती है और अनुरोध किया जाए कि सारे मानवीय पहलुओं , इस झगियों के बसाने में हुए भ्रष्टाचार, अनाधिकृत कब्जे , यहाँ बने  बड़े-बड़े फार्म हाउस  इत्यादि सभी   पहलुओं पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट एक समग्र फैसला दे ताकि सबको यह लगे के इस देश में कानून का शासन  है। इस देश में न्याय बिकता नहीं  है। आम आदमी का देश के सर्वोच्च न्यायालय पर विश्वास बना रहे ।  प्रजातन्त्र में आम आदमी का विश्वाश  गहरा हो ।  बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर के बनाये संविधान के अनुसार चलने वाले शासन और प्रशाशन में हर व्यक्ति को  गरिमा पूरक जीने का  अधिकार हो।

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