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अरावली वन क्षेत्र मे खोरी बस्ती के मकानों को तोड़ने से पहले राहत शिविर कैम्प स्थापित किये जायें - ओमप्रकाश धामा

Posted by : pramod goyal on : Sunday 13 June 2021 0 comments
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फरीदाबाद में आज सबसे गर्म मुद्दा अरावली वन क्षेत्र में बसी खोरी बस्ती में बसी हुई लगभग 10,000 मकानों को  तोड़ने का है जिसके माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हैं और जिला प्रशासन की तरफ से 6 सप्ताह में उन आदेशों की पालना करना अनिवार्य है जिसकी पूरी तैयारी कर ली गई है। कानून की पालना के साथ-साथ यह एक मानवीय मुद्दा भी है के आखिरकार 10000 घरों में बसे लगभग 50,000 व्यक्तियों के पुनर्वास की क्या प्रशासन ने कोई योजना बनाई है या नहीं। भारतीय संविधान की धारा 21 में मनुष्य के जीने का अधिकार भी दिया गया है और माननीय सुप्रीम कोर्ट भी  कई बार यह भी फैसला दे चुका है के हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है। यह भी सही है के ये लोग इस जमीन पर अनाधिकृत रूप से बसे हुए हैं जिसके लिए इनका कसूर 50% है और 50% कसूर  राजनीतिक संरक्षण में पल रहे भू माफिया और प्रशासन का भी है। 50000 लोगों का उजाड़ना कोई  छोटा कार्य नहीं है,उनके बच्चे हैं और समस्या यह है इस करोना काल में  वे फिर कहां जाएंगे । सुप्रीम कोर्ट का  तोड़ने का आदेश, संविधान में दिए गए जीने का अधिकार और राजनीतिक संरक्षण में भू माफियाओं के द्वारा सरकारी जमीन को अनाधिकृत रूप से बेचने का मामला, यह तीनों ही मुद्दे कानून से जुड़े हुए हैं। मेरा सरकार और प्रशासन से अनुरोध है के खोरी बस्ती में मकान तोड़ने से पहले किसी भी स्कूल, धर्मशाला या अन्य सुविधाजनक स्थान पर राहत कैंप स्थापित किए जाएं और जिन लोगों के पास वास्तव में खोरी गांव के सिवाय रहने के लिए कोई अन्य स्थान नहीं है तो उन्हें रात कैंपों में तब तक रखा जाए जब तक इनके पुनर्वास का कहीं कोई प्रबंध ना हो जाए। इन राहत कैंपों में इन लोगों के खानेअरावली वन क्षेत्र मे खोरी बस्ती के मकानों को तोड़ने से पहले राहत शिविर कैम्प  स्थापित किये जायें - ओमप्रकाश धामा  चेयरमैन फरीदाबाद स्लम पुनर्वास एवं

विकास परिषद।

 फरीदाबाद में आज सबसे गर्म मुद्दा अरावली वन क्षेत्र में बसी खोरी बस्ती में बसी हुई लगभग 10,000 मकानों को  तोड़ने का है जिसके माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हैं और जिला प्रशासन की तरफ से 6 सप्ताह में उन आदेशों की पालना करना अनिवार्य है जिसकी पूरी तैयारी कर ली गई है। कानून की पालना के साथ-साथ यह एक मानवीय मुद्दा भी है के आखिरकार 10000 घरों में बसे लगभग 50,000 व्यक्तियों के पुनर्वास की क्या प्रशासन ने कोई योजना बनाई है या नहीं। भारतीय संविधान की धारा 21 में मनुष्य के जीने का अधिकार भी दिया गया है और माननीय सुप्रीम कोर्ट भी  कई बार यह भी फैसला दे चुका है के हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है। यह भी सही है के ये लोग इस जमीन पर अनाधिकृत रूप से बसे हुए हैं जिसके लिए इनका कसूर 50% है और 50% कसूर  राजनीतिक संरक्षण में पल रहे भू माफिया और प्रशासन का भी है। 50000 लोगों का उजाड़ना कोई  छोटा कार्य नहीं है,उनके बच्चे हैं और समस्या यह है इस करोना काल में  वे फिर कहां जाएंगे । सुप्रीम कोर्ट का  तोड़ने का आदेश, संविधान में दिए गए जीने का अधिकार और राजनीतिक संरक्षण में भू माफियाओं के द्वारा सरकारी जमीन को अनाधिकृत रूप से बेचने का मामला, यह तीनों ही मुद्दे कानून से जुड़े हुए हैं। मेरा सरकार और प्रशासन से अनुरोध है के खोरी बस्ती में मकान तोड़ने से पहले किसी भी स्कूल, धर्मशाला या अन्य सुविधाजनक स्थान पर राहत कैंप स्थापित किए जाएं और जिन लोगों के पास वास्तव में खोरी गांव के सिवाय रहने के लिए कोई अन्य स्थान नहीं है तो उन्हें रात कैंपों में तब तक रखा जाए जब तक इनके पुनर्वास का कहीं कोई प्रबंध ना हो जाए। इन राहत कैंपों में इन लोगों के खाने-पीने का पूरा इंतजाम प्रशासन के द्वारा सरकारी खर्च पर किया जाए। और इसके साथ साथ इन सभी लोगों से एक एक शपथ पत्र भी लिया जाए कि उन्होंने जिस जमीन पर मकान बनाए थे, उस जमीन को उन्होंने किस व्यक्ति को कितने पैसे दिये थे । क्योंकि जिस व्यक्ति ने जमीन बेची थी, वह उस  व्यक्ति की जमीन नहीं थी। इसलिए उन शपथ पत्रों के आधार पर जमीन बेचने वाले व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई  भू माफिया गरीबों को लूटने का साहस ना कर पाए। मेरा यह भी सुझाव है कि जवहारलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के  अंतर्गत डबुआ कॉलोनी, बापुनगर और सेक्टर 55 मैं वर्षों से बने खाली पड़े मकानों की तुरंत मरमत करा कर इन लोगों को  अलाट कर दिये जायँ।

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