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चार लाख से ज्यादा विद्यार्थियों ने छोड़ा सरकारी स्कूल, इनमें फरीदाबाद के 24680 बच्चे भी शामिल

Posted by : pramod goyal on : Friday 18 June 2021 0 comments
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 हरियाणा सरकार अपने सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार करने, सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसके लिए हर साल शिक्षा बजट में भी बढ़ोतरी की जाती है उसके बावजूद न तो सरकारी स्कूलों की दशा में कोई खास गुणात्मक सुधार हुआ है और ना छात्रों की संख्या बढ़ रही है। छात्रों की संख्या कम होने के कारण कई प्राइमरी स्कूलों को बंद भी कर दिया गया है।

गत वर्ष शिक्षा मंत्री ने सार्वजनिक तौर पर कई बार इस बात पर खुशी जाहिर की थी कि 2020 में दो लाख बच्चों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया। अब उन्हीं का शिक्षा विभाग कह रहा है कि 2021 में पिछले शिक्षा सत्र के मुकाबले चार लाख से ज्यादा बच्चे सरकारी स्कूलों में कम हो गए हैं या खो गए हैं। इनमें फरीदाबाद जिले के 24680 बच्चों के साथ साथ मुख्यमंत्री के गृह जिले करनाल से 22740 व शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर  के गृह जिले यमुनानगर से 20191 छात्र भी शामिल बताये गए हैं। इस स्थिति से घबराए पंचकूला में बैठे आला शिक्षा अधिकारियों ने आनन-फानन में वर्चुअल मीटिंग के माध्यम से जिला शिक्षा अधिकारियों को इस  इस स्थिति का जिम्मेदार मानते हुए उन्हें कम या खो गए इन बच्चों को ढूंढने और उनको पुनः सरकारी स्कूलों में वापिस लाकर सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ाने के हर संभव प्रयास करने के आदेश दिए हैं। मंच के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट ओपी शर्मा ने कहा है कि
सरकार पहले की तरह ही इस शर्मनाक स्थिति के लिए अपने को कसूरवार नहीं मान रही है। जो कि गलत है  हरियाणा अभिभावक एकता मंच का मानना है कि कई सालों से ऐसी स्थिति आने के लिए हरियाणा सरकार खासकर शिक्षा मंत्री व पंचकूला में बैठे और नित नई स्कीम बनाने वाले शिक्षा विभाग के ब्यूरोक्रेट अधिकारी जिम्मेदार हैं।
दरअसल सरकार ने सरकारी स्कूलों को एक प्रयोगशाला बना दिया है। सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार कराने के लिए कई प्रयोग किए जाते हैं। पहला प्रयोग सफल नहीं हुआ तो फिर कोई दूसरा वह भी सफल नहीं तो तीसरा।  चंडीगढ़ पंचकूला में बैठे हुए शिक्षा मंत्री, अतिरिक्त मुख्य सचिव, शिक्षा निदेशक व अन्य शिक्षा विभाग के अधिकारी एसी रूम में बैठकर प्रोग्राम बनाते हैं। उनका पालन कराने के लिए जिला शिक्षा अधिकारी को सर्कुलर भेज देते हैं। जिला शिक्षा अधिकारी उस सर्कुलर में लिखे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आगे ब्लॉक शिक्षा अधिकारी को भेज देते हैं और ब्लॉक शिक्षा अधिकारी आगे सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल व हेड मास्टर को भेज देते हैं। लेकिन कोई भी यह देखने के लिए फील्ड में नहीं जाता है कि उन कार्यक्रमों पर सही मायने में अमल हो भी हो रहा है या उनका कोई फायदा भी हो रहा है। मुख्यमंत्री हो या शिक्षा मंत्री या हों जिले के आला अधिकारी किसी ने भी सरकारी स्कूलों में जाकर के यह पता लगाने की कोशिश नहीं की है कि स्कूलों की हालत कैसी है,उनमें संसाधनों की क्या कमी है और सरकारी स्कूलों की बिल्डिंग व कमरों की स्थिति कैसी है। हरियाणा अभिभावक एकता मंच के प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा ने कहा है कि 
यह सोचने और देखने की बात है कि सरकारी स्कूलों में निशुल्क पढ़ाई होती है, बच्चों को मुफ्त में मिड-डे-मील मिलता है, किताब कॉपी वर्दी आदि निशुल्क प्रदान की जाती है लड़कियों को साइकिल भी प्रदान की जाती है फिर भी अभिभावकों का रुझान इन स्कूलों की ओर क्यों नहीं हो रहा है। दरअसल सरकार की ना तो नीति अच्छी है और नीयत। शिक्षामंत्री कंवरपाल गुर्जर ने तीन बार घोषणा की कि सरकारी स्कूलों में बिना एसएलसी/ टीसी के बच्चों के दाखिले किए जाएंगे लेकिन 48 घंटे में ही प्राइवेट स्कूलों की सशक्त लॉबी के दबाव में उन्होंने अपना ही फैसला बदल दिया। प्राइवेट स्कूल फीस व फंड के मामले में पूरी तरह से मनमानी करके शिक्षा का व्यवसायीकरण कर रहे हैं सरकार को भी इसकी पूरी जानकारी है लेकि

न वह शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने के लिए कोई भी उचित कार्रवाई नहीं कर रही है। शिक्षा नियमावली में प्राइवेट स्कूल संचालकों के हित में अब तक 7-8  संशोधन किए जा चुके हैं लेकिन शिक्षा नियमावली में शिक्षा का व्यवसायीकरण कर रहे  प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का कोई नियम नहीं रखा गया है। प्राइवेट स्कूल संचालक इसी का फायदा उठा रहे हैं और अभिभावक मजबूरी बस महंगी फीस देकर अपने बच्चों को इन प्राइवेट स्कूलों  में पढ़ा करके आर्थिक व मानसिक शोषण झेल रहे हैं। अगर सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार होता है तो वे जरूर अपने बच्चों को इन सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजेंगे।
ऐसी बात भी नहीं है कि सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार नहीं हो सकता।
सरकार ईमानदारी से चाहे तो सरकारी स्कूलों की दशा में ठीक प्रकार से सुधार हो सकता है। दिल्ली, केरल, केंद्र शासित चंडीगढ़ के सरकारी स्कूलों का कायापलट किया गया है प्राइवेट स्कूलों से भी अच्छी बिल्डिंग बनाई गई है और सभी जरूरी संसाधन मुहैया कराए गए हैं उनमें छात्रों को दाखिले लेने के लिए होड़ लगी रहती है। सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार न होने के और भी कई कारण हैं सबसे बड़ा कारण यह है कि सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को अक्सर गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाता है, अध्यापकों की कमी पहले से ही होती है उसके बाबजूद अध्यापक गैर शैक्षिक कार्यों में लगाए जाते हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। जिले का सांसद, विधायक, पार्षद व अन्य जनप्रतिनिधि प्राइवेट स्कूलों के कार्यक्रमों में तो मुख्य अतिथि बनकर जाते हैं लेकिन उन्हें सरकारी स्कूलों के कार्यक्रमों में जाने में शर्म आती है। यही हाल जिला उपायुक्त व जिले के अन्य अधिकारियों का है वह भी सरकारी स्कूलों की स्थिति का जायजा लेने नहीं जाते हैं यदि कभी जाते हैं तो सिर्फ अध्यापकों और कर्मचारियों के हाजरी रजिस्टर पर ज्यादा फोकस देते हैं यह जानने की कोशिश नहीं करते कि सरकारी स्कूल में क्या-क्या संसाधनों की कमी है, क्या समस्या है। मंच का कहना है कि सरकार को पूरी ईमानदारी से सरकारी स्कूलों की दशा में गुणात्मक सुधार करने का प्रयास फील्ड में उतर कर करना चाहिए। सभी कार्यरत शिक्षकों, जनप्रतिनिधियों, जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ साथ सभी एनजीओ, आरडब्लूए, सामाजिक संस्थाओं, आर्थिक संगठनों और सेवानिर्वित हो चुके शिक्षाविदों को भी मिलजुल कर सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार करने और कराने और सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या को बढ़ाने के लिए विद्या दान महादान की भावना से हर संभव प्रयास व कार्य करना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि वे भी इन सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करके ही आज अच्छे मुकाम पर पहुंचे हैं समाज में अच्छी स्थिति पाने में सफल हुए हैं। हरियाणा अभिभावक एकता मंच पिछले 15 सालों से सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार कराने व सरकारी शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। मंच के प्रयास से ही पलवल व फरीदाबाद में दर्जनों सरकारी स्कूलों की हाईटेक तीन चार मंजिली बिल्डिंग बन रही है। मंच का यही कहना है कि मुख्यमंत्री, शिक्षामंत्री, शिक्षा निदेशक व जिले के आला अधिकारी सरकारी स्कूलों में जाकर के वहां की स्थिति का मुआयना करें, संसाधनों की कमियों और समस्याओं का पता लगाएं और इमानदारी से उनको दूर करने का प्रयास करें तो सरकारी स्कूलों की दशा में गुणात्मक सुधार हो सकता है उनका कायापलट कर सकता है।ऐसा होने पर अभिभावकों का रुझान अपने आप सरकारी स्कूलों की तरफ हो जाएगा और इससे छात्रों की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी। 

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