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महाराष्ट्र मित्र मंडल द्वारा हल्दी कुमकुम कार्यक्रम एवं छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती का आयोजन किया गया

Posted by : pramod goyal on : Saturday 20 February 2021 0 comments
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 महाराष्ट्र मित्र मंडल द्वारा


हल्दी कुम कुम का कार्यक्रम एवं छत्रपति शिवाजी महाराज जी की जयंती का आयोजन किया गया था . कार्यक्रम गाँधी कॉलोनी का आयोजित किया गया था . मंडल के सरक्षक सुधाकर पांचाल ने बताया की हल्दी कुम कुम में विवाहित महिलाएं आपस में एक-दूसरे को मिलकर हल्दी कुमकुम का टीका लगाती है एवं तिल से बनी मिठाई व लड्डू खिलाती है और मेहमान महिलाओं को घरेलू चीज़े आदि उपहार में देती है . ‘‘तील गुल घ्या गोड़ गोड़ बोला’’ कहकर सभी एक-दूसरे को शुभकामनाएं देती हैं . ऐसा कहा जाता है कि हल्दी कुमकुम मनाने की शुरुआत पेशवा साम्राज्य के दौरान हुई . उस जमाने में पुरुष युद्ध लड़ने चले जाते थे और सालों तक घर नहीं आते थे . ऐसे में महिलाएं घर से निकल नहीं सकती थीं इसलिए हल्दी कुमकुम के बहाने आस पड़ोस की औरतों और सहेलियों को अपने घर बुलाती थी . उनके माथे पर हल्दी-कुमकुम लगाकर उनका स्वागत करती थीं . इस दौरान वो उपहार में कपड़े इत्र व श्रृंगार का सामान भी भेंट में देती थीं . महाराष्ट्र मित्र मंडल के द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में मण्डल की माहिलाओ ने एक दुसरे को हल्दी कुमकुम लगा कर एवं घरेलू वस्तु भेंट की . सुधाकर पांचाल ने शिवाजी महाराज के बारे में बताते हुए यह कहा की छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1627 को मराठा परिवार में शिवनेरी (महाराष्ट्रमें हुआ था। शिवाजी के पिता का नाम शाहजी एवं माता का नाम जीजाबाई था शिवाजी महाराज एक भारतीय शासक थे जिन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा किया था . वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे बहादुरबुद्धिमानीशौर्यवीर और दयालु शासक थे . इसीलिए उन्हें एक अग्रगण्य वीर एवं अमर स्वतंत्रता-सेनानी स्वीकार किया जाता है माता जीजाबाई धार्मिक स्वभाव वाली होते हुए भी गुण-स्वभाव और व्यवहार में वीरंगना नारी थीं। इसी कारण उन्होंने बालक शिवा का पालन-पोषण रामायण महाभारत तथा अन्य भारतीय वीरात्माओं की उज्ज्वल कहानियां सुना और शिक्षा देकर किया था . दादा कोणदेव के संरक्षण में उन्हें सभी तरह की सामयिक युद्ध आदि विधाओं में भी निपुण बनाया था . धर्मसंस्कृति और राजनीति की भी उचित शिक्षा दिलवाई थी . उस युग में परम संत रामदेव के संपर्क में आने से शिवाजी पूर्णतया राष्ट्रप्रेमी कर्त्तव्यपरायण एवं कर्मठ योद्धा बन गए . बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे . युवावस्था में आते ही उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे . जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची . अत्याचारी किस्म के यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही डर के मारे बगलें झांकने लगे थे शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया और यह बात पता चलने पर शिवाजी आग बबूला हो गए , उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया . तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहापर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनख का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया . इससे उसकी सेना अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं . उनकी इस वीरता के कारण ही उन्हें एक आदर्श एवं महान राष्ट्रपुरुष के रूप में स्वीकारा जाता है . इसी तरह शिवाजी महाराज अपने जीवन काल में एक से एक युद्ध जीते और मराठा साम्राज्य स्थापित करते गए परन्तु छत्रपति शिवाजी महाराज का अप्रैल 1680 में तीन सप्ताह की बीमारी के बाद रायगढ़ में स्वर्गवास हो गया और मराठा साम्राज्य में अपना महाराज खो दिया परन्तु उनकी स्वराज्य की भावना आगे मराठा शासको में एक प्रेरणा बनी . कार्यक्रम में मंडल के सुधाकर पांचाल , राजेंद्र पांचाल , विनय पांचाल , रवि , लक्ष्मण , रोहित , अक्षय , रमाकांत गुप्ता , तेजस , हरेंद्र , शेखर एवं महिला मंडल से भारती , ज्योति , किरण , अनीता चौरसिया , पल्लवी , रेखा , भावना , वंदना , सुरेखा , यशोदा उपस्थित थे

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