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हरियाणा सरकार ने माना,निजी स्कूलों की फीस को नियंत्रित करने का नहीं है नियम

Posted by : pramod goyal on : Thursday 31 December 2020 0 comments
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 पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में दायर की गई एक अवमानना याचिका पर हरियाणा सरकार ने हलफनामा देकर यह स्वीकार किया है कि इस समय हरियाणा  में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि प्राइवेट स्कूलों की फीस व फंड को नियंत्रित किया जा सके। शिक्षा नियमावली के निय


म कानूनों में भी ऐसा कोई नियम नहीं बना हुआ है कि प्राइवेट स्कूलों की फीस व फंड पर अंकुश लगाया जा सके। 

हरियाणा अभिभावक एकता मंच के प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा व जिला सचिव डॉ मनोज शर्मा ने कहा है कि अभिभावकों के हित में कार्य कर रहे स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन की ओर से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में शिक्षा नियमावली के नियम 158ए को सशक्त बनाने, प्राइवेट स्कूलों की वैधानिक फीस व फंड्स तय करने व शिक्षा का व्यवसायीकरण करके छात्र व अभिभावकों का आर्थिक व मानसिक शोषण कर रहे प्राइवेट स्कूल संचालकों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का नियम बनाने को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। जिस पर हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि याचिका में कही गई बातों पर एक महीने के अंदर उचित कार्रवाई की जाए। लेकिन सरकार ने निर्धारित अवधि में  जब कोई उचित कार्रवाई नहीं की तो संगठन की ओर से हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की गई जिस पर हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर 23 दिसंबर तक हलफनामा दायर करने को कहा। 
डॉ मनोज शर्मा ने बताया है कि सरकार ने जो हलफनामा हाईकोर्ट में दायर किया है उसमें यह माना है कि इस समय शिक्षा नियमावली के नियमों में कोई भी ऐसा नियम नहीं है जिससे प्राइवेट स्कूलों की फीस व फंड पर नियंत्रित किया जा सके सिर्फ प्राइवेट स्कूलों से इस विषय पर फार्म 6 पर पिछली फीस व आगे ली जाने वाली फीस, फंड्स का ब्यौरा मांगा जाता है। शिक्षा नियमावली में संशोधन करके रूल158 व158 ए के तहत प्रत्येक मंडल कमिश्नर की अध्यक्षता में फीस एंड फंडस रेगुलेटरी कमेटी बनाई गई है। स्वास्थ्य सेवा सहयोग संगठन ने अपनी याचिका में एफएफआरसी की कार्यशैली और उसके गठन से भी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस पर भी कोई रोक ना लग    पाने की बात कही थी और रूल्स 158 ए को और अधिक सशक्त बनाने, मनमानी कर रहे प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का नियम बनाने की मांग की थी। इस पर सरकार ने हलफनामे में कहा है कि संगठन द्वारा कही गई मांगो पर उचित कार्रवाई करने के लिए निदेशक माध्यमिक शिक्षा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी जिसने नियमों में संशोधन करने के बारे में अपनी रिपोर्ट बनाकर उसे मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा है अब इस पर फैसला सरकार को करना है।
मंच के प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा का कहना है कि कमेटी ने जो संशोधन करके दिए हैं वे भी आधे अधूरे हैं,उनसे भी प्राइवेट स्कूलों की लूट व मनमानी पर कोई रोक नहीं लग सकती है। संशोधनों में जो कमी की गई है उसके बारे में संगठन की ओर से हाईकोर्ट को अवगत कराया जा रहा है जिस पर आगामी सुनवाई की तारीख 12 फरवरी पर चर्चा करने की अपील की गई है। हाईकोर्ट को अवगत कराया गया है कि प्राइवेट स्कूल संचालक फार्म 6 में जो पिछले शिक्षा सत्र व आगामी शिक्षा सत्र की फीस व फंड भरते हैं वह जायज व वैधानिक है उसकी कोई भी जांच करने का प्रावधान नहीं है यानि स्कूल वाले फार्म 6 में अपने फायदे के अनुसार कुछ भी फीस व फंड बढ़ाकर लिख दें उसे ही सही मान लिया जाता है। इसी लचीले नियम का फायदा स्कूल संचालक उठाते हैं। इसके अलावा रिजर्व व सरप्लस फंड होते हुए भी स्कूल वाले फीस बढ़ा देते हैं, लाभ के पैसे को अन्य जगह ट्रांसफर कर देते हैं इसकी कोई जांच नहीं की जाती है स्कूलों की मनमानी को रोकने के लिए जो फीस एंड फंडस रेगुलेटरी कमेटी बनाई गई है उसको भी कोई व्यापक अधिकार नहीं दिए गए हैं। जो अधिकार दिए गए हैं उनका भी इस्तेमाल एफएफआरसी नहीं करती है। यह कमेटी भी पूरी तरह से स्कूल संचालकों के हित में काम करती है। अतः प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को रोकने के लिए सशक्त नियम कानूनों की जरूरत है।

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