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अंतर्राष्ट्रीय बाल उत्पीड़न रोधी दिवस जागरूकता

Posted by : pramod goyal on : Thursday 4 June 2020 0 comments
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फरीदाबाद। राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय एन एच तीन फरीदाबाद की सैंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड, जूनियर रेडक्रॉस और गाइडस ने अंतर्राष्ट्रीय बाल उत्पीड़न रोधी दिवस पर बालिकाओं को बाल उत्पीड़न के प्रति जागरूक किया। फरीदाबा
द के रेडक्रॉस काउन्सलर और प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा तथा प्राध्यापिकाओं जसनीत कौर, हेमा वर्मा, मनीषा और सोनिया ने ई शिक्षण के अन्तर्गत ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय बाल उत्पीड़न रोधी दिवस पेटिंग और स्लोगन लेखन अभियान चलाया। प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से बच्चों के शोषण और यौन उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार हर तीन में से दो स्कूली बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार होते हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के मुताबिक बीते तीन वर्षों में स्कूलों के भीतर बच्चों के साथ होने वाले शारारिक प्रताड़ना, यौन शोषण, दुर्व्यवहार और हत्या जैसे मामलों में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। बच्चों से लाड–प्यार व दुलार–पुचकार कर उनसे हंसी–खेल करके खुद क्षणिक रूप से बच्चों जैसा बन जाने से तो शायद आपका मन भी तरोताजा और आनंदित हो जाता होगा क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक बचपना छिपा होता है जिससे बच्चो को प्यार करने से इसकी तृप्ति होती है। यह आनंद मनुष्य का स्वस्थ मानसिक भोजन होता है। परन्तु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कुछ लोग इस मानसिक भोजन के अस्वस्थ रूप से ही तृप्त व आनंदित होते है ऐसे लोग बच्चो को प्यार-दुलार की बजाय उन्हें यातनायें देकर संतुष्ट व आनंदित होते है और धीरे-धीरे यह मनोविकृति एक मादक-लत के रूप में हावी होकर पीडोफिलिया नामक मनोरोग का रूप ले लेता है। पीडोफिलिया से ग्रसित व्यक्ति मासूम बच्चो को क्रूरतम शारीरिक व मानसिक यातनाए देने में आनंद की प्राप्ति करता है तथा उसके लिए यह एक ऐसा नशा बन जाता है कि वह बच्चों को यातनाए देने की क्रूरतम विधियां ढूंढ़ता जाता है जिसमे बच्चों के साथ सेक्स, काटना, जलाना यहाँ तक कि उसके अंगों को खाना भी शामिल है। बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के ज्यादातर मामले लम्बी अदालती कार्यवाही के शिकार हो जाते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2013 में केवल 15.3 प्रतिशत मामलों का ही अदालत में ट्रायल पूरा हो पाया। लगभग 85 प्रतिशत मामले देश भर की अदालतों में लंबित हैं। अदालत में दोष सिद्ध कर पाना भी अभियोजन पक्ष के लिए टेढ़ी खीर साबित होती है। पिछले वर्ष केवल साढ़े इकतीस प्रतिशत मामलों में दोषी को सजा हो पायी। प्राचार्य रविन्द्र कुमार मनचन्दा ने छात्रा ताबिंदा, संध्या, मुस्कान, सिमरन, खुशी,  राधा, निशा और गुलबहार की बाल उत्पीड़न के प्रति जागरूक करने के लिए सराहना की और सभी अध्यापकों का बच्चों को प्रेरित करने के लिए आभार व्यक्त किया।

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