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बल्लभगढ़। प्रशासनिक अनदेखी के चलते जिले में मौजूद ऐतिहासिक विरासतें अपना अस्तित्व खो रही हैं। कुछ ऐतिहासिक इमारतें भूमाफियाओं की भेंट चढ चुकी हैं तो कुछ जर्जर हाल में अपनी पहचान खोती जा रही है। इनके संरक्षण की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। बार एसोशिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एडवोकेट एल.एन. पाराशर का कहना है कि देश विदेश में सूरजकुंड मेले को पहचान दिलाने वाले सूर्य कुंड की सुध लेने वाला कोई नहीं है। कुंड सूख गया है। नेशनल हाइवे के पास मौजूद रानी की
छतरी और शाही तालाब की हालत खस्ता है। मुगलों के शासन काल में बनाई गई कोस मीनार अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं।
रानी की छतरी का हाल: पाराशर का कहना है कि रविवार को उन्होंने रानी की छतरी का दौरा किया। यह ऐतिहासिक स्थल बल्लभगढ़ बस अड्डे से करीब एक किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे के पास स्थित है। बताया जाता है कि राजा नाहर की रानी यहां स्नान के लिए आया करती थीं और स्नान के बाद छतरी पर पूजा पाठ करती थीं। आज भी वहां पर पूजा स्थल बना
हुआ है। फिलहाल रानी की छतरी की देखरेख न होने के कारण यह जर्जर हो गई है। आस पास कई लोगों ने कब्जे भी जमाए हुए हैं। सरकार ने इसके जीर्णद्वार के लिए 3 साल पहले 1.20 करोड रूपये भी मंजूर कर दिए हैं। किंतु इसके बावजूद भी अभी तक इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
पाराशर ने कहा कि देश विदेश मेंसूरजकुंड मेले को अंतराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले सूर्य कुंड की सुध लेने
वाला कोई नहीं है। दसवीं शताब्दी में तोमर शासक सूरजपाल ने इस कुंड का निर्माण करवाया था। इसके साथ ही भगवान सूर्य देव का एक मंदिर भी बनाया गया था। मंदिर का अब कोई आस्त्तिव नहीं बचा है। अरावली की वादियों में स्थित इस कुंड की शोभा करीब डेढ दशक पहले तक देखते ही बनती थी। मगर अरावली में अवैध रूप से भूजल दोहन व खनन के कारण इस क्षेत्र का जलस्तर
लगातार घटता चला गया और कुंड सूख गया। प्रशासन के समक्ष अवैध खनन का मामला वह पिछले काफी समय से उठा रहे है। फिलहाल इस कुंड की देखरेख का जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है। मगर उसके जीर्णोद्धार के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
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