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लॉकडाउन में वसूली जा रही फीस व ऑनलाइन क्लास को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

Posted by : pramod goyal on : Thursday 2 July 2020 0 comments
pramod goyal
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फरीदाबाद। प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों द्वारा स्कूल बंद होने के बाद भी अभिभावकों से वसूली जा रही फीस व उनके द्वारा चलाई जा रही ऑनलाइन क्लास को लेकर उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है जो 13366/2020 नंबर से रजिस्टर्ड हुई है। याचिका में लाॅकडाउन के दौरान 1 अप्रैल से 1 जुलाई 202
0 तक तीन महीने के लिए निजी स्कूलों की फीस से छूट और पूरे भारत में फीस संरचना का एक जैसा वैधानिक फार्मूला बनाने की मांग की गई है। ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन आईपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ एडवोकेट अशोक अग्रवाल व राष्ट्रीय महासचिव कैलाश शर्मा ने याचिका दायर करने पर खुशी जाहिर करते हुए बताया कि जनहित याचिका नौ राज्यों की पैरेंटस एसोसिएशन ने अपने अधिवक्ता मयंक क्षीरसागर के माध्यम से दायर की गई है,जिसमें राजस्थान, ओडिशा, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली और मध्य प्रदेश शामिल है। याचिका में कहा गया है कि ''संविधान के तहत मिले जीवन के मौलिक अधिकार के साथ-साथ शिक्षा के अधिकार की भी रक्षा की जाए''। याचिकाकर्ताओं के अनुसार इस समय चल रही महामारी की स्थिति के कारण वह अपने इन अधिकारों से ''वंचित'' हो रहे हैं।  ''महामारी-COVID19 की चल रही इस अवधि में निरंतर आर्थिक रूप से अक्षम अभिभावक बच्चों की फीस के भुगतान का दबाव  झेल रहे हैं। कुछ माता-पिता के पास तो अपने बच्चों का स्कूल छुड़वाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा है क्योंकि वह फीस मांग रहे स्कूल प्रबंधकों की मांग पूरी नहीं कर सकते हैं। इसलिए एक अप्रत्याशित अवधि के लिए उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लिया है। याचिका में पार्टी बने कई अभिभावकों ने अपने वित्तीय संकट का हवाला दिया है और  कहा है कि किसी भी स्कूल में पूर्ण रूप से कोई कामकाज नहीं हो रहा है उसके बावजूद,  सहायता प्राप्त/ गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों ने अप्रैल 2020 से शुरू हुई इस लाॅकडाउन की अवधि के दौरान और बाद में अन लोकडाउन तक स्कूल की फीस में पूरी तरह या आंशिक छूट नहीं दी है। अतः सरकार का कर्तव्य है कि वह ''वित्तीय कठिनाइयों के कारण माता-पिता द्वारा फीस का भुगतान न कर पाने की स्थिति में शिक्षा के मौलिक अधिकार की रक्षा करे क्योंकि संविधान में यह सुरक्षा प्रदान की गई है। माता-पिता की तरफ से यह भी दलील दी गई है कि शिक्षा प्रदान करने की ऑनलाइन प्रणाली से ईडब्ल्यूएस श्रेणी के छात्र शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हो रहे हैं क्योंकि उनके पास ऐसी ऑनलाइन कक्षाओं (मोबाइल, टैबलेट, इंटरनेट कनेक्शन आदि) तक पहुंचने के लिए आवश्यक बुनियादी संसाधनों का अभाव है। वहीं कर्नाटक, मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र आदि राज्यों ने किंडरगार्टन से कक्षा 7 के छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं के संचालन पर और ऑनलाइन कक्षाओं के नाम पर स्कूल की फीस वसूलने पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन अन्य राज्य में इसे लागू नहीं किया गया है। यह भी दलील दी गई है कि लम्बे समय तक मोबाइल के स्क्रीन को देखना छात्रों की आँखों की दृष्टि के लिए हानिकारक हो सकता है छात्रों पर पड़ने वाले प्रभाव और उसकी विश्वसनीयता पर विचार किए बिना ही ऑनलाइन शिक्षा एक अनियमित तरीके से चल रही है। इसलिए माननीय न्यायालय द्वारा इस पर विचार किया जाना चाहिए । याचिका में बताया गया है कि कुछ स्कूल तो ट्यूशन फीस वसूलने की आड़ में अतिरिक्त राशि वसूलने का भी प्रयास कर रहे हैं जो अनैतिक और अनावश्यक है।'' याचिका में मांग की गई है कि अप्रैल 2020 से शुरू हुई इस अवधि के दौरान स्कूल फीस का भुगतान न कर पाने की स्थिति में किसी भी तरह का दंड न लगाया जाए और बच्चे का नाम ना काटा जाए। याचिका में कहा गया है कि फीस व ऑनलाइन क्लास को लेकर विभिन्न हाईकोर्ट ने अलग-अलग आदेश पारित किए हैं।इसलिए इन दिशानिर्देशों/ निर्देशों /आदेशों पर पूरे देश के लिए एक जैसी नीति और कानून बनवाना आज के समय की आवश्यकता है और इसलिए एकीकृत दिशा-निर्देश जारी करने के लिए इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की आवश्यकता हो गई है।  याचिका में यह भी मांग की गई है कि राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वह सभी निजी स्कूलों को केवल ''ट्यूशन फीस'' वसूलने का निर्देश जारी कर सकें। ताकि ऐसे स्कूलों के नामांकित छात्रों से कोई छिपा हुआ या अतिरिक्त शुल्क न वसूला जा सकें। सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग से जुड़े छात्रों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, 2009 के तहत ऑनलाइन कक्षाओं के लिए सुविधाएं प्रदान की जाएं ।

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