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फरीदाबाद। हिंदुस्तान स्काउट्स एसोसिएशन के संरक्षक पंडित मदनमोहन मालवीय का जन्मदिवस पर हिन्दुस्तान स्काउट्स एंड गाइड्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय सचिव श्री देवेन्द्र शर्मा ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का नाम आते ही भारत रत्न महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय जी का तेजस्वी अक्ष आंखों के सम्मुख आ जाता है। 25 दिसंबर, 1861 को पं. मदन मोहन मालविया जी का जन्म हुआ था. इनके पिता पण्डित बृजनाथ कथा, प्रवचन और पूजाकर्म से ही अपने परिवार का पालन करते थे। प्राथमिक शिक्षा पूर्णकर मालवीय जी ने संस्कृत तथा अंग्रेजी पढ़ी। निर्धनता के कारण इनकी माताजी ने अपने कंगन गिरवी रखकर उन्हें पढ़ाया। उन्हें यह बात बहुत कष्ट देती थी कि मुसलमान और ईसाई विद्यार्थी तो अपने धर्म के बारे में खूब जानते हैं, पर हिन्दू इस दिशा में कोरे रहते हैं।
मालवीय जी संस्कृत में एमए करना चाहते थे, पर आर्थिक विपन्नता के कारण उन्हें अध्यापन करना पड़ा । उत्तर प्रदेश में कालाकांकर रियासत के नरेश इनसे बहुत प्रभावित थे, वे ‘हिन्दुस्थान’ नामक समाचार पत्र निकालते थे अतः उन्होंने महामना मालवीय जी को बुलाकर इसका सम्पादक बना दिया । मालवीय जी इस शर्त पर तैयार हुए कि राजा साहब कभी शराब पीकर उनसे बात नहीं करेंगे। मालवीय जी के सम्पादन में पत्र की सारे भारत में ख्याति हो गयी परन्तु एक दिन राजा साहब ने अपना वचन भंग कर दिया अतः सिद्धान्तनिष्ठ मालवीय जी ने त्यागपत्र दे दिया और राजा साहब ने उनसे क्षमा मांगी, लेकिन मालवीय जी नहीं पिघले और विदा लेते समय राजा साहब ने महामना से यह विनती की, कि वे कानून की पढ़ाई करें और इसका खर्च वे उठायेंगे।अतः मालवीय जी ने महाराजा की यह बात मान ली लेकिन निर्भीक पत्रकारिता में उनकी रुचि लेशमात्र भी कम नही हुई और दैनिक हिन्दुस्तान पत्र छोड़ने के उपरान्त भी वे स्वतन्त्र रूप से कई पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे । इंडियन यूनियन, भारत, अभ्युदय, सनातन धर्म, लीडर, हिन्दुस्तान टाइम्स….आदि हिन्दी व अंग्रेजी के कई समाचार पत्रों का सम्पादन भी उन्होंने किया। उन्होंने कई समाचार पत्रों को आम जनता के लिये चलाया और कानून की पढ़ाई पूरी कर वे वकालत करने लगे। इससे उन्होंने प्रचुर मात्रा में धन इकठ्ठा किया और उस धन को हिंदुस्तान में शिक्षा और स्काउटिंग में खर्च किया।
928 में पंडित मदन मोहन मालवीय हिंदुस्तान स्काउट्स एसोसिएशन के प्रथम संरक्षक बन भारतीय बच्चो को स्काउटिंग से जोड़ने का कार्य किया । याद रहे इससे पहले भारतीय बच्चो के लिए स्काउटिंग के द्वार बंद थे ।
पण्डित मदन मोहन मालवीय के नाम पर ममोमा विधि बनी जिन से हिंदी भाषा के शब्दों को दूर संकेतों द्वारा भेजा जा सकता था।
ये सांकेतिक भाषा आज भी स्काउटिंग के पाठ्यक्रमों में शामिल है। ये भी कहा जा सकता है कि महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय जी और पण्डित श्री राम वाजपेयी जी के सु-यत्नों से ही भारत वर्ष में हिंदुस्तानी विद्यार्थियों के लिये स्काउट/गाइड की शिक्षा द्वार खुले । इसीलिये दोनों महानुभावों को हिन्दुतान में स्काउट/गाइड का जन्मदाता कहा जाता है।
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