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फरीदाबाद। चुनाव नामांकन प्रक्रिया पूरी होते ही चुनावी मैदान में उतरे भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशियों को अब सबसे बड़ा खतरा उन अपनों से है, जो पार्टी में दिखाने के लिए तो उनके साथ खड़े है, लेकिन अंदर खाने उनकी जड़ों को खोदने में लगे है। इनमें से कई तो ऐसे नेता है जो टिकट न मिलने से हताश है और अपनी सीट को बचाये रखने के लिए पार्टी द्वारा बनाये गए प्रत्याशी को किसी भी कीमत पर जीतने नहीं देना चाहते है। ऐसे में वे न केवल अन्दर खाने अपनी पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ दूसरे दलों के प्रत्याशियों की मदद कर रहे है, बल्कि ऐसी घेराबंदी भी की जा रही है कि उनके स्थान पर आया प्रत्याशी किसी भी कीमत पर सीट न निकाल पायें। फरीदाबाद विधानसभा क्षेत्र हो या फिर तिगांव और बल्लभगढ़ का सभी जगह टिकट न मिलने से निराश नेता अपनी पार्टी प्रत्याशी को हराने के लिए जी-जान से जुटे है। यह कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भाजपा व कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव में भीतरीघात का शिकार हो सकते है। ऐसे में कई तो ऐसे नेता है जो पार्टी द्वारा घोषित प्रत्याशी के समर्थन में दिखाने के लिए उनका नामांकन भराने तो गए थे, लेकिन वास्तव में वे साथ नहीं है। फरीदाबाद और तिगांव में भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ रची जा रही अन्दरूनी शाजिश का इलम उम्मीदवारों को भी नहीं है। जबकि बल्लभगढ़ में तो हाल ही में बनी भाजपा नेत्री भाजपा प्रत्याशी का नामांकन भराने के लिए साथ ही नहीं गई। जबकि वे कई अन्य स्थानों पर नामांकन प्रक्रिया में शामिल हुई थी। पृथला में तो बागी हुए नयनपाल रावत आजाद उम्मीदवार के रूप नामांकन भरकर अपना स्पष्ट विरोध पहले ही दर्शा चुके है। यही स्थिति कमोबेश कांग्रेस प्रत्याशियों की भी है। उनके प्रचार में अधिकांश कांग्रेसी नेता अपनी दूरी तो बनाए हुए ही है, साथ ही उन्हे हराने का भी पूरा प्रयास कर रहे है। एनआईटी, बडखल और बल्लभगढ़ व दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेसी प्रत्याशी के साथ एकजुट नहीं दिखाई दे रहे है। बडखल में पूर्व मंत्री एसी चौधरी पंजाबियों की कांग्रेस में उपेक्षा का रोना रोकर चुनावी गणित को बिगाडने का प्रयास कर चुके है। बल्लभगढ़ में कांग्रेस के नए चहेरे आनन्द कौशिक को यहां के कांग्रेसियों का अभी साथ ही नहीं मिला है। बल्लभगढ़ में पार्टी प्रत्याशियों की आपसी खीचतान का लाभ निर्दलीय उम्मीदवार शेलेन्द्र सिंह उठा सकते है।
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