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मजबूत प्रत्याशियों और एंटी इंकमबेंसी के चलते कांग्रेस के पक्ष में बनी हवा के बावजूद लोकसभा चुनाव पार्टी के लिए अब इतना आसान नहीं लग रहा। प्रदेश में कांग्रेस के लिए कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। मतदान की तिथि तक अपने पक्ष में माहौल को बनाए रखना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है।
एक तो संगठन नहीं होने के चलते भाजपा के मुकाबले कांग्रेस बूथ स्तर तक पहुंचने में पिछड़ रही है। दूसरा, प्रदेश के दिग्गज नेताओं की गुटबाजी भी पार्टी के लिए घातक साबित हो रही है। अभी तक हरियाणा में पार्टी के स्टार प्रचारक नहीं उतर पाए हैं। केवल पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ही कमान संभाल रहे हैं।
कांग्रेस अभी तक हाईकमान के नेताओं के लिए रैलियों की तारीख व स्थान भी तय नहीं कर पाई है। दूसरी तरफ, भाजपा के सीएम और पूर्व सीएम प्रदेश के 86 विजय संकल्प रैलियां कर चुके हैं। इसके अलावा 16 मई से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी हरियाणा में दस्तक देकर धड़ाधड़ रैलियां करके अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास करेगा।
कई सर्वे के बाद 26 अप्रैल को जब कांग्रेस ने प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे तो उस समय प्रदेश में अचानक से कांग्रेस की हवा बनी और लोगों में चर्चा थी कि इस बार कांग्रेस कई सीटों पर जीत सकती है। आम व्यक्ति से लेकर सट्टा बाजार और चुनावी विश्लेषक तक कांग्रेस की पांच सीटों पर जीत तय मान रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आ रही है, भाजपा ने पूरी ताकत के साथ जमीनी स्तर पर काम तेज कर दिया है और दूसरी तरफ कांग्रेस का प्रचार कमजोर पड़ रहा है।
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