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फरीदाबाद। देश के इतिहास में आजादी के बाद भाजपा सरकार ने मजदूरों-किसानों के खिलाफ एक प्रकार से युद्ध छेड़ दिया है। और यह सब देशी-विदेशी बड़े पूंजीपति-कारपोरेटस घरानों के लिए किया जा रहा है। सितंबर में चले संसद के मानसून सत्र में जिस बेशर्मी के साथ मजदूरों व किसानों के हित में बने कानूनों को पूंजीपतियों के लिए बदल दिया गया वह हम सब के सामने है। व्यापक विरोध के बावजूद 44 श्रम कानूनों को 4 श्रम संहिताओं में बदल दिया गया। इन कानूनों के बदले जाने का अर्थ है स्थाई रोजगार का खात्मा, कम से कम वेतन, मनमाना काम व काम के घंटे बढ़ना, किसी प्रकार की रोजगार की सुरक्षा व सामाजिक सुरक्षा की गारंटी का खत्म होना। मजदूर अधिकारों पर लगभग प्रतिबंध व मजदूरों को मालिकों के गुलाम बनाने का पक्का प्रबंध भाजपा सरकार द्वारा कर दिया गया है। हमारी युवा पीढ़ी व भावी पीढ़ी के लिए पक्का व सम्मानजनक रोजगार सपना बनकर रह जाएगा। सामाजिक सुरक्षा कोड के नाम पर जन कल्याण की जितनी योजनाएं थी, उन्हें केन्द्र के अधीन करके लाभार्थी तबकों से इसे लगभग छीन लिया गया है जैसे निर्माण श्रमिकों के कल्याण बोर्ड में रजिस्ट्रेश व सुविधाओं पर तरह-तरह की शर्तेंं लगाकर अघोषित पाबंदी लगा दी गई है।
एस डी त्यागी का कहना है कि
खेती के बारे तीन कानून जिनमें मंडी खरीद व्यवस्था व न्यूनतम समर्थन मुल्य की प्रणाली को बर्बाद करना, ठेका खेती, आवश्यक वस्तुओं के कानून में बदलाव कर भाजपा ने खेती व फसलों को कारपोरेट व अमीरों के हवाले करने का ही काम किया है। इन कानूनों के चलते न केवल गरीब व मध्यम किसान बर्बाद होगा बल्कि फसल के सरकारी खरीद की प्रणाली बन्द होने के चलते गरीब लोगों को राशन डिपो पर मिलने वाला अनाज का मिलना भी स्वतः ही बंद हो जाएगा। इसलिए यह केवल किसानों को ही नहीं बर्बाद करेगा बल्कि बेजमीने गरीब लोगों को भी गंभीर संकट में डालेगा।
यह सब कोरोना संकट के समय में किया गया है। जिसके चलते पहले ही देष में 10 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए। महिलाओं के रोजगार पर बहुत खराब असर पड़े हैं। गांव-शहर का दिहाड़ीदार या खेतिहर मजदूर हो, प्राईवेट क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी-मजदूर, मास्टर-साधारण वकील, आॅटो-टैक्सी, समान ढुलाई के टैम्पों चलाने वाले, रेहड़ी-पटरी लगाने वाले, दुकानदार, छोटा कारोबारी या छोटा किसान, सब संकट में है। लेकिन जनता को राहत देने की बजाय भाजपा देष के संसाधनों, सार्वजनिक व सरकारी क्षेत्र को पूंजीपतियों के हाथों में सौंपा जा रहा है। रेल, कोयला, बिजली, परिवहन, बीमा, बैंक, सब कुछ देशी-विदेशी कारपोरेटस के हवाले किया जा रहा है।
कोरोना संकट में भी सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र ने ही जनता व समाज को बचाने का काम किया है। आशा वर्कर्स, आंगनवाड़ी, मिड डे मील, ग्रामीण सफाई कर्मचारी, ग्रामीण चैकीदार, सरकारी विभागों में कार्यरत ठेका कर्मचारियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर भी इस महामारी में काम किया है। बड़े-बड़े आन्दोलनों के बाद भी सरकार द्वारा उनकी कोई सूध नहीं ली जा रही। मनरेगा के तहत काम न के बराबर। जनता में भारी गुस्सा है और लोग सड़कों पर उतरकर इन नीतियों का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों व कर्मचारी संगठनों ने 26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल का निर्णय लिया है। वहीं देष के सैंकड़ों किसान संगठनों ने 26-27 नवंबर कोे दिल्ली चलो व देशव्यापी आन्दोलन का आह्वान किया है।
हम मजदूरों-कर्मचारियों-किसानों व आम जनता से अपील करते हैं कि इन आंदोलनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लें व सरकार को करारा जवाब दें। आन्दोलन की प्रमुख मांगें:
मजदूरों व किसानों के बारे बने नए कानूनों रद्द हों। न्यूनतम वेतन 24000 हो। बैंक-बीमा सहित सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण बंद हो। निजी व सरकारी क्षेत्र के छंटनीग्रस्त मजदूरों व कर्मचारियों की नौकरी बहाल हो। सरकारी विभागों में कार्यरत सभी ठेका-कच्चे कर्मचारियों को स्थाई किया जाए व नईं स्थाई भर्ती हो। मनरेगा में 200 दिन काम व 600 दिहाड़ी हो। गैर आयकरदाता परिवारों को 7500 महीना मिले। सभी जरूरतमंदों को प्रतिव्यक्ति 10 किलो अनाज मुफत मिलें। निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के तहत रजिस्ट्रेशन हो व मजदूरों को सुविधाएं मिले, सभी परियोजना कर्मियों, सरकारी विभागों के कच्चे/ठेका कर्मचारियों को पक्का किया जाए, पुरानी पेंशन नीति व डीए बहाल हो।
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