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दो अक्टूर को गांधी जयन्ती के दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली की सड़को पर झाडू लगाकर पूरे देश में स्वच्छ भारत का आगाज किया था। जिसकी नकल न केवल मोदी सरकार के मंत्रियों ने की, बल्कि भाजपा शाषित सरकारों के मुखियाओं ने भी झाडू लगाकर पूरे जोश खरोश के साथ अपने-अपने राज्यों में स्वच्छता अभियान चलाया। इतना ही नहीं प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर पुलिस अधिकारियों ने भी अपने कार्यालयों की सफाई कराकर यह संदेश देने का प्रयास किया कि अब भारत में गंदगी न तो फैलायेगें और न ही किसी को फैलाने देगें। सरकार के नगर निगमों व नगर पालिकाओं ने भी इस अभियान को सफल बनाने के लिए अपने सफाई कर्मचारियों की पूरी फौज इस कार्य में लगा दी। जिससे लगने लगा कि अब शायद भारत के लोग गंदगी भरे माहौल से छुटकारा पा जायेगें। आम लोगों ने भी इस अभियान की जमकर तारिफ की। लेकिन समय बीतते ही न तो सरकारी अमला ही सफाई पर दिखाई दिया और न ही नेताओं ने इस अभियान का हिस्सा बनकर इसे आगे बढ़ाया। नेताओं का झाडू अभियान केवल फोटो सेशन तक सीमित होकर रह गया। आज फिर वहीं हालात है कि सड़कों पर गंदगी का अंबार लगा है और नालियां कूढ़े से अटी पड़ी है। लोग खुले में ही शौच कर रहे है। बल्कि यह कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि स्वच्छ भारत अभियान के बाद देश के प्रत्येक कोने में गंदगी कम होने की बजाय बढ़ी है। इस अभियान का मूल उद्देश्य लोगों को जागरूक करना था कि वे अपनी आदतों में बदलाव लाएं और न तो गंदगी फैलाएं और न दूसरों को फैलाने दें। लेकिन न तो लोगों की आदत ही बदली और न ही प्रशासन व नेताओं ने कोई सबक लिया और स्वच्छ भारत का यह सपना अधूरा ही रह गया।
अब न तो गंदगी को साफ करने के प्रति संबंधित विभाग गंभीर है और न ही जनप्रतिनिधियों को इससे कोई लेना देना है। ऐसे नेता मोदी के कुछ इसी तरह के दूसरे अभियान की नकल करने को तो ललायित है, लेकिन पुराने अभियान को कारगर करने के प्रति संवेदनशील नहीं है।
हम तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से यही कहेगें कि पहले खुद बदल जाओं और अपने नेताओं की आदत बदल दो, जनता अपनी आदत स्वयं बदल लेगी। जब राजनीति में ही गंदगी भरी है तो फिर सड़क की गंदगी कैसे दूर होगी।
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