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ऑनलाइन पढ़ाई सिर्फ फीस वसूलने का जरिया, बच्चों के स्वास्थ्य पर पढ़ रहा है बुरा असर

Posted by : pramod goyal on : Thursday 16 July 2020 0 comments
pramod goyal
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फरीदाबाद।
मानव संसाधन मंत्रालय ने स्कूल बंद होने के कारण विद्यार्थियों को दी जा रही ऑनलाइन क्लास के बारे में कुछ गाइडलाइन जारी की हैं। जिसके अनुसार एनसीईआरटी के सिलेबस के अनुसार नर्सरी, केजी के लिए रोज सिर्फ 30 मिनट की क्लास, एक से आठवीं के बच्चों के लिए 30 से 45 मिनट के दो सत्र और नौवीं से बारहवीं तक के छात्रों के लिए 30 से 45 मिनट के चार सत्र की ऑनलाइन पढ़ाई कराई जाएगी । एचआरडी की इस गाइड लाइन पर अभिभावक संगठन , स्कूल प्रबंधक , अभिभावक , नेत्र डॉक्टर व समाजसेवी ने अलग-अलग राय प्रकट की है। हरियाणा अभिभावक एकता मंच के प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा ने कहा है कि लोकडाउन से पहले छात्र स्कूलों में बड़े ब्लैक बोर्ड पर दी जा रही पढ़ाई करने के बाद भी ट्यूशन लगाकर अपने होमवर्क व  पढ़ाई को पूरा करते थे उसके बावजूद 100 में से सिर्फ 25 से 30 बच्चे ही अच्छे अंकों में पास  होते थे बाकी छात्रों के एवरेज नंबर आते थे अब ऑनलाइन पढ़ाई में मोबाइल के दो तीन इंच की स्क्रीन पर पढ़ाई कितनी सार्थक होगी इसका जवाब स्कूल प्रबंधकों को देना चाहिए। समाज सेविका नूतन शर्मा ने कहा है कि एक विषय का अध्यापक 100 से ज्यादा बच्चों को दो-तीन घंटे ऑनलाइन पढ़ाई कराता है जो किसी भी तरह से उपयोगी नहीं है। यह सिर्फ एक फॉर्मेलिटी है और फीस वसूलने का जरिया है।  कोरोना से देश बचेगा, समाज बचेगा तो पढ़ाई भी बच जाएगी। अभिभावक अर्चना अग्रवाल एडवोकेट ने कहा है कि सबसे बड़ी बात यह है कि स्थिति सही होने पर अगर दिसंबर में अर्धवार्षिक  व फरवरी-मार्च में वार्षिक परीक्षा आयोजित हुई तो उसमें उन बच्चों को भी बैठाया जाएगा जो आज संसाधन की कमी से ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर रहे हैं जब ऑनलाइन पढ़ाई की कोई वैधानिक मान्यता नहीं है तो फिर क्यों जबरदस्ती बच्चों व उनके अभिभावकों को ऑनलाइन पढ़ाई के इस ड्रामे में झोंका जा रहा है । अभिभावक व शिक्षाविद डिंपल गौड़ का कहना है कि माता-पिता पहले भी अपने बच्चों के होमवर्क में मदद करते थे आज जो शिक्षक ऑनलाइन पढ़ाई करा रहे हैं उसमें भी मां बाप ही मदद कर रहे हैं उन्हें बच्चों के साथ बैठना पड़ता है  ऐसी हालात में ऑनलाइन पढ़ाई का क्या फायदा। स्कूल प्रबंधक ऑनलाइन क्लास टेस्ट व  ऑनलाइन परीक्षा लेने की बात कहते हैं । स्थिति सही होने पर अगर वार्षिक परीक्षा हुई तो उसमें  ऑनलाइन टेस्ट व परीक्षा के नंबर जब लगने ही नहीं है तो स्कूल प्रबंधक यह भ्रमजाल क्यों फैला रहे हैं। मनोवैज्ञानिक व नेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर भी कहते हैं कि मोबाइल स्क्रीन पर लगातार पढ़ाई करने से बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। लगातार स्क्रीन देखने से आंखें कमजोर होने के साथ-साथ मोबाइल की रेडिएशन से स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। मंच के जिला अध्यक्ष एडवोकेट शिव कुमार जोशी का कहना है कि 10वीं से 12वीं कक्षा तक के लिए ही ऑनलाइन क्लॉस का प्रावधान होना चाहिए। वह भी एचआरडी द्वारा जारी की गई गाइडलाइन के अनुसार । प्राइमरी व  मिडिल क्लास के बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई पूरी तरह से बंद होनी चाहिए। कर्नाटक, मध्यप्रदेश झारखंड, महाराष्ट्र ,राजस्थान आदि राज्यों ने तो प्राइमरी ऑनलाइन क्लास पर प्रतिबंध लगा दिया है।

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