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श्रम कानूनों को निलंबित करने व काम के घंटे बढ़ाने के खिलाफ कर्मचारी व मजदूर संगठन लामबंद हुए

Posted by : pramod goyal on : Saturday 9 May 2020 0 comments
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फरीदाबाद,9 मई। श्रम कानूनों को निलंबित करने व काम के घंटे बढ़ाने के खिलाफ कर्मचारी व मजदूर संगठन लामबंद हो गए हैं। इन संगठनों ने केन्द्र एवं राज्य सरकारों के इस प्रकार के किसी भी फैसले का डटकर विरोध करने का ऐलान किया है। सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के प्रदेशाध्यक्ष सुभाष लांबा व वरिष्ठ उपाध्यक्ष नरेश कुमार शास्त्री और मजदूर संगठन सीआईटीयू के राज्य महासचिव जयभगवान व जिला प्रधान निरंतर पराशर ने यह जानकारी देते हुए बताया कि केन्द्र व राज्य सरकार कोविड 19 में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के नाम पर मजदूरों द्वारा कुर्बानियां दे हासिल किए गए श्रम
कानूनों को निलंबित करने के लिए देश में माहौल बनाया जा रहा है। जिससे कारखाना मालिकों को मजदूरों का खून चुसने की खूली छूट प्राप्त हो जाएगी और मजदूर को मालिकों के शोषण के खिलाफ किसी भी स्तर पर आवाज भी नहीं उठा पाएंगे। मजदूरों को भूख व शोषण से बचाने के मुद्दों पर सरकार गंभीर नजर नहीं आ रही।
सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के प्रदेशाध्यक्ष सुभाष लांबा व सीआईटीयू के राज्य महासचिव जयभगवान ने बताया कि कि मजदूरों को भूख से बचाया जाए व उन्हें आर्थिक मदद मिले। सरकार मजदूर व जरूरतमंद परिवार को सूखा राशन व ईंधन उपलब्ध करवाए। आज जो बेरोजगारी की हालत  बन गई है, उसमें उन तमाम परिवारों को 7500  रुपए नगद राशि प्रत्येक माह अगले 6 महीने तक उपलब्ध करवाई जाए। राज्य सरकार द्वारा काम के घंटे 12 करने कि कड़ी निंदा करते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की मांग की है। उन्होंने कहा कि 2 लाख भट्ठा मजदूरों व असंगठित मजदूरों तक अभी भी राशन नहीं पहुंचा है। सरकार ने स्वयं कहा कि अब तक सरकार की ओर से 60 हजार किट राशन बांटा है। राशन ख़त्म होने, मकान मालिकों द्वारा किराए का दबाव बनाने, ईंधन की समस्या और बिना किसी आर्थिक मदद के मजदूरों में काफी बेचैनी पैदा हो रही है और प्रवासी मजदूर अपने घर लौट रहे है। इसलिए राज्य सरकार मजदूरों की तमाम तरह की सहायता करें और ऐसे तमाम प्रवासी मजदूरों को जो घर जाना चाहते है, उन्हें उनके घरों तक पहुंचवाने का प्रबन्ध करें। उन्होंने बताया कि इस समय सरकार का पूरा जोर इस पर रहना चाहिए की बाजार में मांग कैसे बढ़े। मांग तभी बढ़ेगी जब लोगों की जेब में पैसा जाएगा। मांग बढ़ने पर ही उत्पादन प्रक्रिया की बहाली संभव है। इसलिए मनरेगा में लोगो को काम देना चाहिए, मनरेगा शहरों में भी लागू हो, 100 दिन की सीमा हटे। इसी प्रकार लघु उद्योग शुरू हो इसके लिए सरकार को लेबर कोस्ट खुद वहन करनी चाहिए, ताकि स्माल स्केल इंडस्ट्री पटरी पर लोटे। दवा प्रतिनिधियों को फिल्ड में भेजे जाने के गेर कानूनी कार्य पर दवा कम्पनियों के खिलाफ कार्यवाही हो।

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