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महारानी अवंती बाई लोधी का बलिदान दिवस मनाया

Posted by : pramod goyal on : Thursday 21 March 2019 0 comments
pramod goyal
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फरीदाबाद।  अमर शहीद वीरांगना महारानी अवंती बाई लोधी चौक, एनआईटी फरीदाबाद में लोधी राजपूत जन कल्याण समिति रजि फरीदाबाद द्वारा प्रथम स्वाधीनता संग्राम की अग्रणी प्रणेता अमर शहीद वीरांगना महारानी  अवंतीबाई लोधी की 161वां बलिदान दिवस समारोह मनाया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री भुवनेशवर हिन्दूस्तानी एवं समिति के संस्थापक, लाखन सिंह लोधी ने शहीद की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए बताया कि महारानी का जन्म 16 अगस्त  1831 को मनकैडी के राव जुझार सिंह लोधी के परिवार में हुआ था। इनका विवाह रामगण मण्डला मध्य प्रदेश के राजा विक्रमादित्य लोधी के साथ हुआ। इनके दो पुत्र शेर सिंह और अमान सिंह हुए। 1857 की क्रान्ति की आग पूरे देश में फैल चुकी थी। रानी ने भी स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रजों के विरूद्ध एकजुट होकर लडने के लिए संदेश जमीदारों, माल गुजारों, मुखियाओ को निम्र प्रकारण पत्र भेजे एक कागज का टुकडा और सादा कांच की चूडिया भिजवाई का
गज पर लिखा था कि देश की रक्षा  या चूडी पहनकर घर में बैठो। रानी ने अपने राज्य और आसपास से अंग्रेजों का भगाना शुरू कर दिया। इसका उल्लेखन धम्मन सिंह की कृति अवंतीबाई काव्य रानी के समकालीन मदन भटट के छन्दों में एफ आर आर रेडमैन आईसीएस द्वारा सम्पादित मण्डला गजेटिर 1912 में, सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रकाशित महिलाएं और स्वराज पृष्ठ 65 पर इसी मंत्रालय  द्वारा सन सतावन के भूले बिसरे शहीद। लैफ्टिेंट कालबर्न के साथ कई युद्ध हुए। इसी बीच एक युद्ध में कैप्टन वाडिंगटन का एक बच्चा रह जाने पर  रानी द्वारा अपने सैनिकों से जबलपुर दावनी में पहुचंाया गया प्रभावित होकर वाडिगटन ने रानी को बगावत छोडने के बदले राज्य वापिसी की पेशकश की गयी। लेकिन रानी ने स्पष्ट से मना कर दिया।
लाखन सिंह लोधी ने बताया कि उस समय मेजर अर्सकिन जबलपुर पत्र व्यवहार की फाईल  1० और 33/1857 जिसमें लिखा कि सभी के साथ 4००० विद्रोही ही मिल चुके। अन्तिम युद्ध के समय सामने से वाडिंगटन बाये से लैफ्टिैनेट बार्टन, दाये से लैफ्टिेनेट कालवर्न और पीछे से देशद्रोही रीवा  ने आक्रमण किया। देवहारगढ की पहाडियों में 18 दिनों तक छापामार युद्ध होने के पश्चात 2० मार्च 1858 को रानी ने  आत्मबलिदान कर देश पर शहीद हो गयी।

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